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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
अथ द्वीन्द्रियदुःखानि वर्णयन्नाद - 'गंडूलय ' इत्यादि ।
मूलम् - गंडूलय - जलूय - किमिय- चंदणग - माइए य जाइकुलको डिसय सहस्सेहिं सत्तहिं अणूणगेहिं बेइंदियाण तहिं तहिं वे जम्मण मरणाणि अणुहवंता कालं संखिज्जगं भमंति नेरइय समाणतिव्व दुक्खा फरिस-रसण संपउत्ता॥सू०४३ ॥
टीका - त्रीन्द्रियात् समागताः द्वीन्द्रियेष्वपि 'गंडूलय - जलूय किमियचंदणगमाइए ' गण्डोलक - जलूक - कृमि-चन्दन- कादिकेषु - गण्डोला: गोमयादिषु समुत्पन्नाः कीटविशेषाः, जलुका:=जलजन्तुका : 'जोक' इति प्रसिद्धाः कृमयः = ' लट ' ' चूरणिया ' इति प्रसिद्धाः, चन्दनका: शङ्खजातिविशेषाः, ते आदिर्येषां ते तथा तेषु ' बेइदियाण ' द्वीन्द्रियाणां 'सत्तहिं 'सप्तसु जातिकुलकोटिशतसहस्रेषु अन्यृनेषु जन्ममरणानि अनुभवन्तो नारकसमान तीब्रदुःखाः स्पर्शरसनेतीन्द्रियद्वय सम्प्रयुक्ताः संख्यातवर्षसहस्रलक्षणं कालं यावत् भ्रमन्ति ॥ ४३ ॥
अब द्वीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होकर के वे किन किन दुःखों को भोगते हैं इसका सूत्रकार वर्णन करते हैं-' गंडूल य ' इत्यादि । टीकार्थ-तेन्द्रिय योनि से निकल कर वे पापी जीव दीन्द्रिय जीवों में (गंडूलय-जलूय - किमिय- चंदणग-माइएस) गण्डोलक, जलोक, कृमि, और शंख आदिकों में भी कि जिनकी ( सत्तर्हि जाइकुलकोडि सयसस्से हिं) सातलाख जातिकुल कोटि हैं ( तहिं २ ) वहीं वहीं बार २ ( जम्ममरणाणि अणुहवंता) जन्म मरण करते हुए ( नेरइय समाण तिव्वदुक्खा) नारकियों जैसा तीव्र दुःख भोगते हुए (फरिस - रसण संपत्ता ) स्प
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હવે ફ્રીન્દ્રિય જીવેામાં ઉત્પન્ન થઇને તે કયાં કયાં દુઃખો ભાગવે છે, तेनु' सूत्रार वान उरे छे -" गेडूलय " इत्यादि
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टीअर्थ-तेन्द्रिय योनिमांनी नीजीने ते पाथी वो " गंडूलय - जलूयfafaa-dz010-873eg” „das, vâls, ¿lu, a'u mult allfeu gani yen से छे. ते द्वीन्द्रिय लवोना पशु "सत्तर्हि जाइकुलको डिसयसहस्से हिं” नति प्रभाषे सात साथ प्राशे छे. “तर्हि तहिं" ते हरे लतियां वारंवार ' जम्ममरणाणि अणुहवंता" જન્મ મરણ અનુભવતા नेरइयसमाणतिव्वदुक्खा " तेथे नारीओ देवां आउ दुःखो लोगवे छे. "फरिसर सण संपत्ता "
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સ્પર્શન અને રસના ઇન્દ્રિ