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प्रश्नव्याकरणसूत्रे 'जंत पत्थर' यन्त्र प्रस्तराः घरट्टादयः 'सूइतल' सूचीतलं-ऊर्ध्वमुखसूचीमय भूमिभागः, 'क्खारवावि' क्षारवाप्यः क्षारजलसंभृतवापिकाः, 'कलकलंतवेयरणि ' कलकलायमानवैतरणी = कलकलशब्दायमानमतप्तत्रपुसीसकादिपूर्णा वैतरणी नामधेया नदी, ' कलंबबालुया' कदम्बवालुका-असिसन्तप्तत्वात्कदम्बपुष्पवद् रक्तवालुकामयी नदी, 'जलियगुह ' ज्वलितगुहा-प्रज्वलिताग्निमयीकन्दरा, इत्येतेषां द्वन्द्वः, तेषु असिवनादिषु 'निरंभणं' निरोधनम् , तथाउसिणोसिणकंटइल्लदुग्गमरहजोयणतत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि' उष्णोष्णकण्टकाकीर्णदुर्गमस्थयोजन तप्तलोहमार्गगमनवाहनानि-उष्णादप्युष्ण इत्युष्णोष्णः अत्युष्णः कण्टकैः सुतीक्ष्णकीलकैराकीर्णो व्याप्तो दुर्गमा दुःखेण गमागमनं यस्य स तथा, दुर्गमश्च यो स्थः तस्मिन् योजन-संयोजनं बलीपर्दानामेवेति तत्तथा, तच, तप्तलोहमयमार्गे गमनं-नयनं वाहनं भारोद्वाहन चेति तथा तानि ॥मू०३२॥ तीक्ष्ण अग्रभागवाले दर्भ विशेषों के वन में (जंतपत्थर ) यंत्र प्रस्तरों में (सूइतल ) उर्ध्व मुखवाली सूइयों से युक्त भूमिभाग में, (खारवावि) खारे जल से परिपूर्ण हुई वावडियों में, (कलकलंतवेयरणि ) कलकल शब्द से युक्त ऐसे द्रवीभूत हुए रांग और सीसे आदि से भरी हुई वैतरणी नाम की नदी में, (कलंबवालुया ) अत्यंततप्त होने के कारण कदम्बपुष्प के समान रक्त वर्णवाली वालुका से युक्त नदी में, ( जलियगुह) प्रज्वलित अग्निमयी कन्दराओं में, (निरंभणं ) रोक देते हैं। ( उसिणोसिणकंटइल्लदुग्गमरहजोयणतत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि) (उसिणोसिण ) अत्यंत उष्ण, ( कंटइल ) सुतीक्ष्णकंटकों से आकीर्ण, तथा (दुग्गम ) दुर्गम-मुश्किल खींचा जा सके ऐसे ( रहजोयण ) रथ में उन नारकियों को बैलों की तरह जोत देते हैं। (तत्तलोहमग्गगमण ) तप्त प्रस्तरीमा, “सूइतल" reliuो मा अq स्थितिमा सय मेवी सोयोथी युद्धत भूमि ५२, “खारवावि" पास थी लरेसी पावामी, “कलकलंतवेयरणिं" ખળ ખળ અવાજથી યુક્ત. ઓગાળેલા કથીર, સીસું આદિના રસથી ભરેલ वैत२०ी नामनी नहीमi, "कलंबवालुया" भतिशय तपेसी डापाथी ४४.५ पना समान २४१ रेतीथी युत नहीमा, "जलियगुह" पसित निजी ४४राममा “निरंभणं" । छ. “ उसिणोसिणकंटइल्लदुगगमरहजोयणतत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि" " उसिणोसिण" भतिशय , “कंटइल्ल" मति ily silथी छपाये, तथा “दुग्गम" दुर्गम-भुश्तीथी ची शय तेवा "रहजो. यण" २५ साथे ते ना२४ीमाने मगहीनी भने छ. " तत्तलोहमगगमण "
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