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प्रश्नव्याकरणसूत्र मारय, 'विच्छुभ' विक्षिप-कूपादौ प्रक्षिप, ‘उच्छुभ' उत् क्षिप-उर्ध्वक्षिप 'आकड्र' आकर्षकचादिकं गृहीत्वाकर्षय-कण्टकाकीर्ण भूमौ घर्षयेत्यर्थः, 'विक' विकर्ष अधो मुखं कृत्वा घर्षय । एतादृशीं वेदनां दत्त्वा नारकान् प्रति वदति, 'किंण जंपसि' कि न जल्पसिकथं न वदसि हे पापिन् 'सराहि' स्मर स्मरणं कुरु : कियाई' कृतानि = पूर्वभवसमाचरितानि, 'दुक्याई' दुष्कृतानिपाणातिपातादीनि 'पावकम्माई' पापकर्माणि । एवं अनेन प्रकारेण वयणमहप्पगम्भो' वचनमहाप्रगल्भा वचनैः नरकपालवाग्भिः महाप्रगल्भः अतिदुर्धर्षः भयावह-इत्यर्थः । संपडिसुयसहसंकुलो ' संप्रतिश्रुतशब्दसंकुल संपतिश्रुतः= प्रतिध्वनितः यः शब्दः, तेन संकुल: व्याप्तः । 'सया ' सदा सर्वदा 'उत्तासओ' उत्त्रासका परमत्रासजनकः 'महाणगरडज्ज्ञमाणसरिसो' महानगरदह्यमानसदृशः =दह्यमानस्य प्रज्वल्यमानस्य महानगरस्य यः शब्दस्तेन तुल्यः, एतादृशः 'तहियं' तत्र नरके-'निरयगोयराणं' निरयगोचराणां-निरयगौः-नरकभूमिः, तत्र चरन्ति =नारकत्रासार्थ विचरन्ति ये ते निरयगोचराः परमाधार्मिकास्तेषाम् , तथाऊपर इसको उछाल दो। ( आकड ) बाल आदि पकड़ कर इसे कण्टकाकीर्ण भूमि में खूब खेंचों । (विकड्ढ ) इसे औधा मुख करके जमीन पर खूब रगड़ो। इस प्रकार की वेदना देने की बात कहकर फिर वह उन नारकियों से कहता है-( किं ण जंपसि ) हे पापी। तू बोलता क्यों नहीं है ( सराहि पावकम्माइं कियाई दुक्कयाई ) पूर्वभव में समाचरित प्राणातिपात आदि अपने पापकर्मों को अब तू याद कर ले। ( एवं ) इस प्रकार का ( वयणमहप्पगम्भो नरकपाल की वाणियों द्वारा अतिदुर्धर्ष भयंकर बना हुआ, (संपडिसुयसहसंकुलो ) प्रतिध्वनि से व्याप्त हुआ, (सया उत्तासओ) सर्वदा दूसरों को त्रास जनक एवं ( महाणगरडज्झ माणसरिसो) दह्यमान महानगर के शब्द के जैसा उद्भूत हुआ (निरभडाशि मा ५२ ते ५31 "विच्छभ" वा पोम तेने ३, "उच्छुभ" तेने 2 3जो, “आकड्ढ" तेने वाण माहिने ५डीने xital
भीनमा पसी, “विकड्ढ" तेने धा भाभी ५२ ५५ २होतो. सा प्रमाणे वेदना पायावानी वात परीने ते ना२७ वोने ४ छ “ किं ण जपसि" याची ! तु भारती भ नथी ? “सराहि पावकम्माई कियाइं दुक्कयाई" પૂર્વભવમાં આરારેલ પ્રાણાતિપાત આદિ પાપકર્મોને તું યાદ કરી લે. “a” આ
२. “वयणमहप्पगब्भो" न२४ासनी queil 43 मतिष-मय४२ सागतो, "संपडिसुयसहसंकुलो" ५४ाथी व्यास थतो, " सया उत्तासओ" सहा भीतने श्रासन, भने “महाणगरडज्झमाणसरिसो" मतi भडानगरमाथी मत डाय
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