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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ܘܘܪ www.kobatirth.org प्रश्नव्याकरणसूत्रे , घोरा विकटा - श्रवणेऽपि दुःखजनकत्वात्, भोषणा भयोत्पादिका - प्रतिप्राणिभयजनकत्वात् दारुणा हृदयसंक्षोभकारिणी प्रतिकाररहितत्वात् तथा-भूतया बेदना पापिनो दुःखमनुभवन्तीति सम्बन्धः ' किं ते ' कानि तानि दुःखानि ? तान्यग्रेऽनुपदे वर्णयिष्यते ॥ सू०२५ ॥ अथ तान्येव दुःखानि वर्णयति कंदु महाकुम्भीए' इत्यादि । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलम् - कंदु महाकुंभीए पयण- पउलण- तवग तलण भट्ट भ जणाणि य लोहकडाकणाणि य कोहवलिकरणकोट्टणाणि य सामलि तिक्खग्ग-लोहकंटग - अभिसारणा पसारणाणि, फालण विदारणाणि य अवकोडक बंधणाणि, लट्ठिसयतालणाणि य, गलगबलुलंबणाणियसूलग्गभेयणाणि य, आएसपर्वचणाणि यखिंसणा माणणाणि य विघुट्टपणिजणाणियवज्जसय माइयाणि य ॥ २६ ॥ टीका - ' कंदुमहाकुंभीए' कन्दुमहाकुम्भ्यो :=कन्दुः = लोहमयविशालपात्रप्रति प्रदेश में व्यापक होने से प्रचण्ड - भयानक होती है, घोर-सुनने में भी दुःखजक होने से विकट होती है, (बीहणग) हरएक प्राणी में भय की संचारक होने से भीषण भयोत्पादिका होती है, (दारुणाए ) इसका वहां कोई इलाज नहीं होता है इसलिये यह हृदय को संक्षोभकारिणी होने से दारूण होती है। इस प्रकारकी वेदना से पापी जीव नरकों में दुःखों का अनुभव करते हैं । (किंते) वे दुःख कौन कौन से हैं वह इसी के अगले सूत्र में कहेंगे ॥ सू. २५॥ अब सूत्रकार " किते " इन पदों द्वारा सूचित दुःखों को कहते हैं वामां भाव ॥ सू. २५ ॥ હવે સૂત્રકાર 66 आत्माना हरे! अद्वेशोभां व्यापेसी होवाथी प्रयड लयान होय छे, घोरसांता ना होवाथी विष्ट होय छे, "बीहणग ” દરેક પ્રાણીમાં ભયના સંચાર કરનાર હેાવાથી; ભીષણ-ભયંકર હોય છે, दारुणाए " तेने! ત્યાં કાઈ ઇલાજ હાતા નથી, તેથી તે હૃદયમાં ક્ષેાભ ઉત્પન્ન કરનાર હેાવાથી દારુણ હોય છે. આ પ્રકારની વેદનાથી પાપી જવ નરકામાં દુઃખાના અનુભવ ४रे छे. " किंते " ते हुः यो इयांड्यांछे ते डबे पछीना सूत्रभां मता " किंते " द्वारा सूचित हामोनुं वार्डन रे " कैदु For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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