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मुदर्शिनी टीका भ० १ २० २३ के के जीवा पापं कुर्वन्ति ! विसयवासी य' चिलात विषयवासिनथ, चिलातदेशवासिनोऽनार्याः, ‘पावमइणो' पापमतया पापबुद्धयः सन्ति ॥ सू०२२ ॥
पुनरपि केके जीवाः पापं कुर्वन्तीति तान् दर्शयितुमाह-'जलयर' इत्यादि।
मूलम्-जलयर-थलयर-सणप्फय-ओरग-खहयर-संडासतोंड-जीवोवघायजीवी सण्णी य असण्णिणो पजत्ते अपज्जत्ते य-असुभलेस्स परिणमे एए अण्णे य एवमाई करोति पाणाइवायकरणं। पावापावाभिगमाः पावमई पावरुई पाणवहकयरई पाणवहरूवाणुढाणा पाणवहकहासु अभिरमंता तुट्रा पावं करेत्तु हुंतिय बहुप्पगारं ॥ सू० २३ ॥
टीका-'जलयर-थलयर-सणफओरंग-खहयर-संडासतोंड जीवोवघायजीवी ' जलचर स्थलचर सनखपदोरग-खचर संदंशतुण्ड जीवोपघातजीविन: जलचराः ग्राहादयः, स्थलचराः चतुष्पदाः, सनवपदाः नखयुक्तचरणाः व्याविसयवासी य ) चिलात देशवासी मनुष्य, ये सब अनार्य हैं ( पावमइणो) इनकी बुद्धि पापकर्म में रत रहती है। ये जितने भी नाम के कहे हैं वे सब पापकर्म में रतमतिवाले हैं और ये प्राणवध के करने वाले हैं । सू० २२॥ ___ अब सूत्रकार फिर यह कहते हैं कि कौन से जीव पाप करतेहैं'जलचर थलचर' इत्यादि।
टीकार्थ-(जलयर) ग्राह आदि जलचर जीव, (थलयर) चतुष्पद-गाय, भैंस, आदि चार पद वाले स्थल चर जीव, (सणप्फय) नखयुक्त पैरोंवाले देशवासी मनुष्य, मे सनी मनाय नमो छ, भने “ पावमइणो" તેમની બુદ્ધિ પાપકર્મમાં લીન રહે છે. આ જે જે જાતિઓ બતાવી છે તે જાતિઓના લેકે પાપકર્મમાં રત-લીન મતિવાળા હોય છે અને તેઓ પ્રાણવધ કરનારા હોય છે. સૂ. ૨૨
હવે સૂત્રકાર ફરીથી એ બતાવે છે કે કયા કયા જી પાપ કરે છે "जलयर थलचर " त्याहि.
थ-"जलयर" आई माEिareA२ १, "थलयर" यतुष्पह-आय,लेस माहि यो५॥ २२२ वो, “सणफय " ना२ युत पवा वाघ माह
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