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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे धारिणः । आशालिकाः, उरः परिसर्पविशेषाः । एते च चक्रवत्तिवासुदेववळ देवादीनां स्कन्धावारमध्ये ग्रामनगरादिषु वा एतेषां विनाशकाले सामुदानिक कर्मोदयात् - असशिनो मिथ्यादृष्टयः संमूर्छिमपञ्चेन्द्रिया अन्तर्मुहूर्त्तायुष्काः जघन्येनाsकुलस्यासंख्येयभागपरिमितयाऽवगाहनया, उत्कर्षेण द्वादशयोजन परिमितया sवगाहनया विष्कम्भबाहल्येन तथानुरूपां भूमि विदार्य समुत्पद्यन्ते । अन्तर्मुहूर्त्तानन्तरं तन्मरणे - स्कन्धावारादीनां सहसा विनाशो भवति । 'महोरगा' योजनसहस्र क्यों कि फण को अधिक विस्तार करने की इसमें शक्ति नहीं होती है। (काकोदर) काकोदर - सामान्य सर्पका नाम है। इसी तरह ( दग्भपुप्फ) दर्भपुष्प भी वह सर्प होता है जो सामान्य रूपसे फणा से युक्त होता है, परन्तु यह अपने फणा को तानता नहीं हैं, बीन बजाने पर भी यह प्रकृतिस्थ बना रहता है । (आसालिय) आशालिक भी सर्पों की एक विशेष जाती है। ये चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, आदिकों के सैन्य के निवासस्थानमें अथवा ग्राम नगर आदिकों में भूमि के नीचे उत्पन्न होते हैं, इनके विनाशकाल में सामुदानिक कर्मका उदय होता है, स्कन्धावार- छावनी तथा गाम नगरादि जमीन में उतर जाते हैं प्रायः मर जाते हैं ये असंज्ञी मिथ्यादृष्टि होते हैं, इनका जन्म संमूच्छिम होता है, इनके पांचो इन्द्रियां होती है। इनकी आयु अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होती है इनके शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है तथा उत्कृष्ट से द्वादश योजनप्रमाण होती है, अन्तर्मुहूर्त के बाद इनका मरण हो जाता रणुर्डे वधारे प्रभाशुभां देवाववानी शक्ति तेनाभां होती नथी. "काकोदर" अहिर सामान्य सर्पतुं नाम छेप्रमाणे "दब्भपुप्फ" हर्लयुष्य पशु सेवा પ્રકારના સર્પ છે કે જે સામાન્ય રીતે ફણાથી યુક્ત હાય છે, પણ તે પેાતાની ફણાને ફેલાવતા નથી, મારલી ખાવવામાં આવે તે પણ તે ફણાને વિસ્તાર્યો विना भूण स्थितिमा ४ रहे छे. "आसालिय” माशासिक, पशु सर्योनी ठ ખાસ જાતિ છે. તે ચક્રવર્તી, વાસુદેવ, ખલદેવ આઢિના સૈન્યના નિવાસસ્થાનમાં અથવા ગામ નાર આદિમાં ભૂમિની નીચે ઉત્પન્ન થાય છે, તેમના વિનાશ કાળે સામુદાયિક કર્મીના ઉદય થાય છે. સ્કન્ધાવાર-છાવણી તથા ગામ નગર આદિ જમીનમાં ઉતરી જાય છે. સામાન્ય રીતે મરી જાય છે. તે અસ'ની મિથ્યાદૃષ્ટિ હોય છે. તેમનેા જન્મ સ’મૂર્ચ્છિમ થાય છે, તેમને પાંચે ઇન્દ્રિયો હોય છે. તેમનું આયુષ્ય અન્તમુહૂર્ત પ્રમાણુ છે, તેમના શરીરની અવગાહના જઘન્યથી 'ગુલના અસ ંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ હોય છે, તથા ઉત્કૃષ્ટ ખાર ચાજન प्रभा होय . अन्तर्मुहूर्त पछी तेमनुं भरा था लय छे " महोरगा " For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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