SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ मङ्गलाचरण न्यायकन्दली संक्षेपेणाभिवायको ग्रन्थः प्रकृष्टो मया वक्ष्यत इति ग्रन्थकर्तुः प्रतिज्ञा। ग्रन्थस्य चेयं प्रकृष्टता यदन्यत्र ग्रन्थे विस्तरेणेतस्ततोऽभिहितानामिहैकत्र तावतामेव पदार्थधर्माणां ग्रन्थे संक्षेपेण कथनम् । एतदेव चास्यारम्भः सत्स्वप्युपनिबन्धान्तरेषु पदार्थधर्माणां सङ्ग्रहः पदार्थधर्मप्रतीतिहेतुः । पदार्थधर्मप्रतीतिश्च न पुरुषार्थः, सुखदुःखाप्तिहान्योः पुरुषप्रयोजकत्वात् । तस्मादयमपुरुषार्थहेतुत्वादनुपादेय एवेत्याशङ्कय तस्य पुरुषार्थफलता प्रतिपादयितुमुक्तं महोदय इति । महानुदयो महत्फलमपवर्गलक्षणं यस्मात् सङ्ग्रहादसौ महोदयः सङ्ग्रहः । एतेन सङ्ग्रहस्य पदार्थधम्मैः सह वाच्यवाचकभावः, तत्प्रतिपत्त्या च महोदयेन सह साध्यसाधनभावः सम्बन्धो दर्शितः। - ननु भोः क एष महोदयो नाम? . (१) सजासनसमुच्छेदो ज्ञानोपरम इत्येके । तथा च पठन्ति - न प्रेत्य संज्ञास्तीति । तदयुक्तम्, सर्वतः प्रियतमस्यात्मनः समुच्छेदाय प्रेक्षावत्प्रवृत्त्यनुपपत्तेः, बन्धविच्छेदपर्यायस्य मुक्तिशब्दस्यातदर्थत्वाच्च । । उनके धम्मों को संक्षेप में प्रतिपादित करनेवाले उत्तम ग्रन्थ को कहूँगा” ग्रन्थकार की ऐसी प्रतिज्ञा प्रतीत होती है। इस ग्रन्थ में और ग्रन्थों से उत्तमता यही है कि अन्य ग्रन्थों में जहाँ तहाँ विस्तृत रूप से कहे गये पदार्थ इस ग्रन्थ में एक ही स्थान में संक्षेप से कहे गये हैं। इसीलिए और निबन्धों के रहते हुए भी इसकी रचना सार्थक है । (प्र०) “पदार्थधर्माणां सङ्ग्रहः" इस वाक्य का अर्थ है पदार्थों और उनके धर्मों की सम्यक् प्रतीति का कारण', किन्तु पदार्थों की या उनके धम्मों की सम्यक् (यथार्थ) प्रतीति तो पुरुष का अभीष्ट नहीं है, क्योंकि पुरुष (जीव) का यथार्थ अभीष्ट : तो सुख प्राप्ति एवं दुःख की निवृत्ति ये ही दोनों हैं। तस्मात् यह ग्रन्थ पुरुष के अभीष्ट का सम्पादक न होने क कारण अनुपादेय ही है। यही प्रश्न (मन में) रख कर (इसके उत्तर स्वरूप) “यह ग्रन्थ पुरुष के उक्त प्रयोजन का सम्पादक है" यह कहने के लिए “महोदयः" यह पद लिखा है। "महान् उदय' अर्थात् अपवर्ग (मोक्ष) रूप महान् फल जिस सङ्ग्रह से हो वही "महोदय सङ्ग्रह" है। इससे इस “सङग्रह' रूप ग्रन्थ का पदार्थ और उनके धम्मों के साथ कार्यकारणभाव सम्बन्ध दिखलाया गया है। प्र०) यह महोदय नाम की कौन वस्तु है ? (१) कोई (बौद्धविशेष) कहते हैं कि वासनारूप मूलसहित ज्ञान का नाश ही 'महोदय' निर्वाण) है। इसके प्रमाण में वे उपनिषद् का यह वाक्य उद्धृत करते हैं-"न प्रेत्य संज्ञास्ति', अर्थात् मरने के बाद 'संज्ञा' (चेतना) नहीं रहती है । (उ०) किन्तु यह पक्ष अयुक्त है, क्योंकि (प्रश्नकर्ता के मत से आत्मा ज्ञानरूप है) आत्मा ही For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy