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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन भारतीय परम्परा के अनुसार वेद सम्पूर्ण ज्ञान के निधान माने जाते हैं । वेद तथा उनके अन्तिम भाग उपनिषद् आस्तिक दर्शनों के स्रोत हैं । मूलतः तीन दर्शन परिगणनीय होते हैं-१. सांख्य, २. वैशेषिक तथा ३. पूर्वमीमांसा । यद्यपि उक्त तीनों दर्शन वेद का प्रामाण्य स्वीकृत करने के कारण आस्तिक हैं, तथापि ये ईश्वर को नहीं मानते । पद्मपुराण में इन्हें वेदबाह्य कहा गया है। इनके सेश्वरत्व के लिए पूरक रूप में अन्य तीन दर्शनों का अवतार हुआ। वे हैं क्रमशः-१. योगदर्शन, २. न्यायदर्शन तथा ३. उत्तरमीमांसा ( वेदान्तदर्शन)। उक्त दर्शनों के जो तत्त्वबीज वेदों में संनिहित हैं, उन्हीं को सूत्ररूप में प्रस्तुत करने का कार्य किया है—कपिल, पतञ्जलि, कणाद, गोतम, जैमिनि तथा व्यास ने । कणाद के वैशेषिक सूत्र ( चतुर्थ तथा सप्तम अध्याय ) में भौतिक जगत का आधार परमाणुओं में संनिहित बताया गया है । पदार्थों के स्वरूप निर्णय के लिए भारतीय विद्यावेत्ताओं को वैशेषिक दर्शन का ज्ञान उसी प्रकार अनिवार्य है, जिस प्रकार पदसाधुत्व के निर्णय के लिए पाणिनीय व्याकरण का अनुशीलन । जिस प्रकार योगसूत्र के प्रथम सूत्र 'अथ योगानुशासनम्' में योग शब्द के उल्लेख के कारण योगसूत्र तथा ब्रह्मसूत्र के प्रथम सूत्र 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' में ब्रह्म शब्द के उल्लेख के कारण ग्रन्थ का नामकरण ब्रह्मसूत्र हुआ, उसी प्रकार वैशेषिकदर्शन के प्रथम सूत्र ‘अथातो धर्म व्याख्यास्यामः' के अनुसार यद्यपि इसका नामकरण धर्मसूत्र होना चाहिए था, तथापि चतुर्थ सूत्र में वर्णित पदार्थों के मध्य 'विशेष' पदार्थ के कारण यह दर्शन प्रसिद्ध हुआ है। सांख्य दर्शन की अपेक्षा विशिष्ट होने के कारण इसका नाम वैशेषिक दर्शन पड़ा-ऐसी भी कुछ विद्वानों की मान्यता है। यद्यपि महाभारत के शान्तिपर्व (अ० ३२०, २२) में वैशेषिक शब्द का स्पष्ट उल्लेख हुआ है यस्माच्चैतन्मया प्राप्तं ज्ञानं वैशेषिकं पुरा । यस्य नान्यः प्रवक्ताऽस्ति मोक्षं तदपि मे शृणु ।। तथापि व्याख्याकारों में पर्याप्त मतभेद है । परमानन्द महाभारत की अपनी व्याख्या में 'वैशेषिक' का अर्थ करते हैं-'आत्मनो यो विशेषस्तत्प्रकाशकम्'। केवल अर्जुन मिश्र (महा) भारतार्थ(प्र)दीपिका नामक अपनी व्याख्या में वैशेषिक शब्द को स्पष्टतः कणादकृत वैशेषिक दर्शन बताते हैं-'वैशेषिकम् = पदार्थस्वरूपनिरूपणद्वारा हेयोपादेयफलम् , हेयोपादानाभ्यामात्मतत्त्वविवेकफलं कणादप्रणीतशास्त्रम्। किन्तु उन्होंने अपने द्वारा किये गये उक्त अर्थ के प्रति अरुचि दिखाते हुए 'यद्वा विशेषाय प्रवृत्तं सांख्यपदेन प्रसिद्धमेव शास्त्रं वैशेषिकम्' लिखा । महाभारत के उक्त श्लोक के पूर्व प्रथम तथा चतुर्थ For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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