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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७२० न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [कर्मनिरूपण प्रशस्तपादभाष्यम् कर्माणि भवन्ति यावद्धस्ततोमरविभाग इति । ततो विभागानोदने निवृत्ते संस्कारादूर्ध्व तिर्यग् दूरमासन्नं वा प्रयत्नानुरूपाणि कर्माणि भवन्त्यापतनादिति । तथा यन्त्रमुक्तेषु गमनविधिः कथम् १ यो बलवान् कृतव्यायामो वामेन करेण धनुर्विष्टभ्य दक्षिणेन शरं सन्धाय सहायता से तोमर में संस्कार को उत्पन्न करती है। इसके बाद संस्कार और नोदन से तोमर में तब तक क्रियायें उत्पन्न होती रहती हैं, जब तक हाथ और तोमर का विभाग उत्पन्न नहीं हो जाता। इसके बाद विभाग से जब नोदन नाम के संयोग का नाश हो जाता है, तब उस संस्कार ( वेग ) से पतन के समय तक पार्श्व में, दूर में, या समीप में फेंकी जाने की क्रियायें उत्पन्न होती रहती हैं। ___इसी प्रकार यन्त्र (धनुषादि ) के द्वारा फेंकी हुई ( शरादि ) वस्तुओं में भी गमन क्रिया की रीति जाननी चाहिए। (प्र०) कैसे ? ( उ० ) न्यायकन्दली जायत इति। ऊर्ध्वक्षेपणेच्छायामूर्ध्वक्षेपणप्रयत्नो जायते। दूरक्षेपणेच्छायां महान् प्रयत्नः, आसन्नक्षेपणेच्छायां च शिथिलः प्रयत्नो जायत इति तदनुरूपशब्दार्थः। तमपेक्षमाणस्तोमरहस्तसंयोगो नोदनाख्यो नोद्यस्य तोमरस्य नोदकस्य च हस्तस्य सहगमनहेतुत्वात् । तस्मान्नोदनाख्याद् यथोक्तादिच्छानुरूपप्रयत्नापेक्षात् तोमरे कर्मोत्पन्नम् । तत् कर्म नोदनापेक्षम्, तस्मिन् तोमरे संस्कारमारभते। ततः संस्कारेति । तोमरस्य पतनं यावत् संस्कारात् तदनुरूपाणि कर्माणि भवन्तीत्यर्थः। __कृतव्यायामः कृतायुधाभ्यासो वामेन करेण धनुर्विष्टभ्य गाढं गृहीत्वा दक्षिणेन शरं सन्धाय ज्यायां शरं संयोज्य सशरां ज्यां शरेण सह वर्तमानां टेढ़ा कर फेंकने की इच्छा के होने पर प्रयत्न भी तदनुकूल हो उत्पन्न होता है। एवं ऊपर की ओर फेंकने की इच्छा होने पर ऊपर फेंकने के अनुकूल ही प्रयत्न भी उत्पन्न होता है । दूर फेंकने की इच्छा होने पर बहुत बड़ा प्रयस्न उत्पन्न होता है। समीप में फेंकने की इच्छा होने पर शिथिल प्रयत्न उत्पन्न होता है । 'तमपेक्षमाणस्तोमरहस्तसंयोगो नोदनाख्यः' क्योंकि नोद्य जो तोमर एवं नोदक जो हाथ, इन दोनों के साथ साथ ही वह गमन का भी कारण है। 'तस्मात्' अर्थात् कथित उस नोदन नाम के संयोग के द्वारा उक्त इच्छानुरूप प्रयत्न के साहाय्य से तोमर में क्रिया की उत्पत्ति होती है । यही क्रिया नोदन संयोग की सहायता से तोमर में संस्कार ( वेग को) उत्पन्न करती है। 'ततः संस्कारैति' अर्थात् जब तक तोमर का पतन नहीं हो जाता, तब तक वेग से उसमें नोदन के अनुरूप क्रियाओं की उत्पत्ति होती है । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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