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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम्॥ भाषानुवादसहितम् ७१३ प्रशस्तपादभाष्यम् सत्प्रत्ययकर्मविधिः । कथम् ? चिकीर्षितेषु यज्ञाध्ययनदानकृष्यादिषु यथा हस्तमुत्क्षेतुमिच्छत्यपक्षेप्तुं वा, तदा हस्तवत्यात्मप्रदेशे प्रयत्नः सञ्जायते । तं प्रयत्नं गुरुत्वं चापेक्षमाणादात्महस्तसंयोगाद्धस्ते कर्म भवति, हस्तवत् सर्वशरीरावयवेषु पादादिषु शरीरे चेति ।। सत्प्रत्य य अर्थात् प्रयत्न से उत्पन्न क्रिया की उत्पत्ति की विधि कहते हैं । (प्र.) कैसे ? अर्थात् यह सत्प्रत्यय रूप कर्म किस प्रकार उत्पन्न होता है ? ( उ० ) यज्ञ, अध्ययन, दान अथवा कृषि प्रभृति कर्म के उत्पादन की इच्छा होने पर हाथ को नीचे या ऊपर करने के लिए आत्मा के हाथवाले प्रदेश में प्रयत्न की उत्पत्ति होती है । इसी प्रकार इस प्रयत्न. गुरुत्व एवं आत्मा और हाथ के संयोग इन तीनों कारणों से हाथ में क्रिया की उत्पत्ति होती है । हाथ की तरह शरीर के पैर प्रभृति अवयवों में एवं शरीर रूप अवयवी में भी क्रिया की उत्पत्ति होती है । न्यायकन्दली कस्मान्न भवति ? अथोच्यते । न कारणसद्भावे सत्युपचारकल्पना, किन्तु स्थिते व्यवहारे कारणकल्पनेति । एवं चेदत्रापि स एव परिहारः। सत्प्रत्ययकर्मविधिः-प्रयत्नपूर्वककर्मप्रकारः कथ्यत इत्यर्थः । कथमिति पृष्टः सन्नाह-चिकीर्षितेष्विति। यज्ञादिषु कर्तुमभिप्रेतेषु सत्सु यदा पुरुषो हस्तमुत्क्षेप्तुमिच्छति, तदा हस्तवत्यात्मप्रदेशे प्रयत्नो जायते। तं प्रयत्नं निमित्तकारणभूतमपेक्षमाणादात्महस्तसंयोगादसमवायिकारणाद्धस्ते कर्म भवति । कारण उक्त प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता)। (उ०) तो फिर प्रकृत में मेरे लिए भी यही परिहार है। अर्थात् लोक में उत्क्षेपणादि क्रियाओं में गमन का व्यवहार होता है, अतः उस व्यवहार के लिए हेतु की कल्पना करते हैं। गमन में उत्क्षेपणादि का व्यवहार लोक में नहीं होता है, अतः उसके लिए किसी चर्चा की आवश्यकता नहीं है । 'सत्प्रत्ययकर्मविधिः' अर्थात् प्रयत्न के द्वारा उत्पन्न कर्म की उत्पत्ति की रीति कहते हैं । 'किस प्रकार ?' यह पूछे जाने पर 'चिकीषितेषु' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा उसका उपपादन करते हैं। यज्ञादि कर्मों का अनुष्ठान पुरुष को अभिप्रेत रहने पर उसके लिए वह जिस समय हाथ को ऊपर की ओर उठाता है, उस समय आत्मा के हाथवाले प्रदेश में प्रयत्न उत्पन्न होता है। इस प्रयत्न रूप निमित्तकारण से हाथ में क्रिया उत्पन्न होती है, जिसका असमवायिकारण आत्मा और हाथ का संयोग है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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