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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६४० न्यायकन्दली संवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणनिरूपणे गुरुत्व प्रशस्तपादभाष्यम् गुरुत्वं जलभूम्योः पतनकर्मकारणम् । अप्रत्यक्षं पतनकर्मानुमेयं संयोग प्रयत्न संस्कारविरोधि । अस्य चावादिपरमाणुरूपादिवन्नित्या नित्यत्वनिष्पत्तयः । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जिससे पृथिवी और जल में पतनक्रिया की उत्पत्ति हो, वही गुरुत्व है । पतन क्रिया रूप हेतु से इसका अनुमान ही होता है, इसका प्रत्यक्ष नहीं होता । यह संयोग, प्रयत्न और संस्कार का प्रतिरोधक है । जलादि के परमाणु और जलादि कार्यद्रव्य में रहनेवाले रूपादि के नित्यत्व और अनित्यत्व की तरह गुरुत्व के नित्यत्व और अनित्यत्व की स्थिति समझनी चाहिए । न्यायकन्दली गुरुत्वं जलभूम्योरित्याश्रयकथनम् । पतनकर्मकारणमिति तस्य कार्यनिरूपणम् । अप्रत्यक्षमिति स्वभावोपवर्णनम्, न केनचिदिन्द्रियेण गुरुत्वं गृह्यत इत्यर्थः । द्रव्यस्य ये तु त्वगिन्द्रियग्राह्यं गुरुत्वमाहुः, तेषामधः स्थितस्य स्पर्शोपलम्भवद् गुरुत्वोपलम्भप्रसङ्गः त्वगिन्द्रियस्यार्थोपलम्भे स्वसन्निकर्षव्यतिरेकेणान्यापेक्षा सम्भवात् । यत्तूपरिस्थितस्य गुरुत्वं प्रतीयते, तद्धस्तादीनामधोगमनानुमानात् । अतीन्द्रियं चेत् कथमस्य प्रतीतिः ? इत्यत आह-पतनकर्मानुमेयमिति । यदवयविद्रव्यस्य पतनं तेन यदेकार्थसमवेतासमवायिकारणं तदेव 'गुरुत्वं जलभूभ्यो:' इस वाक्य में प्रयुक्त 'जलभूम्यो:' इस पद से गुरुत्व के आश्रय दिखलाये गये हैं । पतनकर्मकारणम्' इस वाक्य से गुरुत्व के द्वारा होनेवाले कार्यों को दिखलाया गया है। 'अप्रत्यक्षम्' इस पद से गुरुत्व का ( अतीन्द्रियत्व रूप ) स्वभाव दिखलाया गया है । अर्थात् गुरुत्व का ग्रहण किसी भी इन्द्रिय से नहीं होता । जिस सम्प्रदाय के लोग त्वगिन्द्रिय से गुरुत्व का प्रत्यक्ष मानते हैं, उनके मत में जिस प्रकार नीचे रक्खे हुए द्रव्य के स्पर्श का प्रत्यक्ष होता है, उसी प्रकार उस द्रव्य के गुरुत्व विषयक स्पार्शनप्रत्यक्ष की आपत्ति होगी। क्योंकि त्वगिन्द्रिय से प्रत्यक्ष के लिए उसका त्वगिन्द्रिय के साथ सम्बन्ध को छोड़ कर और किसी के साहाय्य की अपेक्षा मानना सम्भव नहीं है । ( तब रहा यह प्रश्न कि उसी द्रव्य को ऊपर उठाने पर गुरुत्व की उपलब्धि किस प्रमाण होती है ? इस प्रश्न का यह उत्तर है कि ) द्रव्य उठानेवाले हाथ प्रभृति द्रव्यों का ( उस अवस्था में ) नीचे की तरफ जाने से उस द्रव्य के गुरुत्व का अनुमान होता है । जिस अवयवी रूप द्रव्य का पतन होता है, उस पतन के साथ एक अर्थ ( उसी अवयवी द्रव्य ) में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाले ( पतन का ) समवायिकारण ही 'गुरुत्व' है । किसी सम्प्रदाय के लोग अवयवी में गुरुत्व नहीं मानते For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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