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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४६७ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली तदात्मतया च व्यवस्थितयोरवृक्षव्यावृत्यशिशपाव्यावृत्त्योः सत्यपि भेदे यथाध्यवसायं तादात्म्यमिति चेत् ? सिद्धे तादात्म्ये सयशिशपाव्यावृत्त्या धर्मिण्यवृक्षव्यावृत्तिरध्यवसेया, तत्राध्यवसितायामवृक्षव्यावृत्तौ यथाध्यवसायं तादात्म्यसिद्धिरित्यन्योन्याश्रयदोषः । व्याप्तिग्रहणवेलायामेकात्मतयाध्यवसितयोावृत्त्योस्तादात्म्यसिद्धिरिति चेत् ? तथाध्यवसितयोरभेद: काल्पनिकः । यद्यनुमानं कल्पनासमारोपेणापि प्रवर्तत, न कश्चिदहेतु म । प्रमेयत्वानित्यत्वयोरप्येकात्मतयाध्यवसितयोर्यथाध्यवसायं हैं। (प्र०) वृक्ष और शिशपा इन दोनों में यद्यपि तादात्म्य है, किन्तु वृक्ष और शिशपा इन दोनों से क्रमशः अभिग्न रूप से निश्चित अवृक्षव्यावृत्ति (वृक्ष भिन्नभिन्नत्व) और अशिंशपाव्यावृत्ति ( शिशपा-भिन्न भिन्नत्व ) ये दोनों व्यावृत्तियाँ परस्पर भिन्न हैं। अत: दोनों व्यावत्तियों में वास्तविक भेद रहते हुए भी ज्ञानीय अभेद ( अर्थात् 'दोनों अभिन्न हैं' इस आकार के भ्रमात्मक ज्ञान के द्वारा गृहीत अभेद ) है, और इसी अभेद के कारण अशिंशपाव्यावृत्ति रूप हेतु के द्वारा अवक्षव्यावृत्ति का अनुमान होता है । (उ०) यह कहना भी सम्भव नहीं है (क्योंकि इससे अन्योन्याश्रय दोष होगा) चूकि तादात्म्य के रहने पर अशिशपाव्यावृत्ति के द्वारा वृक्ष रूप धर्मी में अवृक्षव्यावृत्ति का अनुमान होगा, कथित साध्य साधनभूत दोनों व्यावृत्तियों में तादात्म्य तब होगा जब कि पक्ष रूप शिशपा में अनुमान के द्वारा अवृक्षव्यावृत्ति की प्रतीति हो जाएगी, अतः अन्योन्याश्रय दोष होगा। (प्र.) व्याप्ति ज्ञान के समय में ही जो दोनों व्यावृत्तियों का अभेद गृहीत होता है, उसी से तादात्म्य की सिद्धि होती है अतः (अनुमितिमूलक उक्त अन्योन्याश्रय दोष नहीं है)। (उ० तो फिर यह कहिए कि अभिन्न रूप से ज्ञायमान दोनों व्यावृत्तियों का अभेद काल्पनिक है, वास्तविक नहीं। यदि हेतु प्रभृति के काल्पनिक ज्ञान से भी अनुमान की प्रवृत्ति माने तो हेत्वाभाग नाम की कोई वस्तु ही नहीं रह जाएगी। इस प्रकार तो प्रमेयत्व एवं अनित्यत्व इन दोनों में भी एकात्मता (अभेद) का विपर्यय हो ही सकता है, और इस विपर्यय रूप अध्यवसाय के द्वारा प्रमेयत्व और अनित्यत्व में भी काल्पनिक अभेद रहेगा ही। (प्र०) (जहाँ अनित्यत्व नहीं है, वहाँ भी प्रमेयत्व है, इस प्रकार ) विपक्षव्यावृत्ति के न रहने के कारण प्रमेयत्व १. अवृक्षव्यावृत्त हैं वृक्ष से भिन्न सभी पदार्थों के भेदों का समूह एवं अशिंशपाव्यावृत्त है शिंशपावृक्षमात्र को छोड़ और सभी पदार्थों के भेदों का समूह, इन दोनों भेदों के समूह भिन्न हैं, क्योंकि दोनों भेदों के प्रतियोगी समूह अलग अलग हैं, पहले प्रतियोगि समूह में शिंशपा नहीं है, क्योंकि शिंशपा भी वृक्ष ही है। दूसरे समूह में शिंशपा को छोड़कर और सभी वृक्ष भी हैं क्योंकि सभी वृक्ष शिंशपा नहीं हैं। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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