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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir यदि धवादिसाधारणी वृक्षता न शिशपात्वम्, तदा नानयोरेकत्वं स्वभावभेदस्य मेदलक्षणत्वात् । अभेदे तु यथा वृक्षत्वं सर्ववृक्षसाधारणं तथा शिशपात्वमपि स्यात् । न च तादात्म्ये गम्यगमकभावे व्यवस्था युक्ता, तस्याभेदाश्रयत्वात् । यदि शिशपात्वे गृह्यमाणे वृक्षत्वमगृहीतम्, क्व तादात्म्यम् ? गृहीतं चेत् ? (तत्) क्वानुमानम् ? अथोच्यते - यथावस्थितो धर्मी, शिशपात्वं वृक्षत्वं च त्रयमेकात्मकमेव, तत्र धर्मिणि गृह्यमाणे शिशपात्वं वृक्षत्वमपि गृहीतमेव । यथोक्तम् तस्माद् दृष्टस्य भावस्य दृष्ट एवाखिलो गुणः । भागः कोऽन्यो न दृष्टः स्याद् यः प्रमाणैः परीक्ष्यते ॥ इति । જહા वह्नि जन्य मानना है, तो उसमें रहनेवाले वस्तुतः तदभिन्न पार्थिवत्वादि को भी वह्नि जन्य मानना ही होगा ) अतः कथित व्यभिचार है ही । यह भी निश्चय नहीं है कि शिशपा तो वृक्ष रूप है, किन्तु ( वृक्षत्व के आश्रय खदिरादि अन्यवृक्षों में भी ) साधारण रूप से रहने के कारण वृक्षत्व शिशपा स्वरूप नहीं है क्योंकि वृक्ष और शिशपा दोनों अभिन्न हैं । यदि ( प्र० ) यह कहें कि वृक्षत्व ( शिशपा की तरह उससे भिन्न ) धवादि में भी है किन्तु शिशपात्व तो केवल शिशपा में ही है, धवादि में नहीं । ( उ० ) तो फिर वृक्षत्व और शिशपात्व दोनों एक नहीं हो सकते, क्योंकि स्वभावों की विभिन्नता ही वस्तुओं की विभिन्नता है । यदि शिशपात्व और वृक्षत्व को अभिन्न मानें तो फिर जिस प्रकार वृक्षत्व सभी वृक्षों में रहता है, उसी प्रकार ( वृक्षत्व से अभिन्न ) शिशपात्व की सत्ता भी सभी वृक्षों में माननी ही पड़ेगी। दूसरी बात यह है कि यदि वृक्षत्व और शिशपात्व में अभेद मानें तो यह निर्द्धारण नहीं हो सकता कि शिशपात्व ही वृक्षत्व का ज्ञापक है, वृक्षत्व शिशपात्व का ज्ञापक नहीं। क्योंकि ज्ञाप्यज्ञापकभाव भेदों के अधीन है ( अर्थात् ज्ञाप्य और ज्ञापक को परस्पर भिन्न हो होना चाहिए ) । शिशपात्व का ज्ञान हो जाने पर भी यदि वृक्षत्व अज्ञात ही रहता है, तो फिर शिशपात्व और वृक्षत्व में तादात्म्य कहाँ ? यदि शिशपात्व के गृहीत होने पर उसी ज्ञान से वृक्षत्व भी गृहीत हो जाता है, तो फिर वृक्षत्व के अनुमान की ही कौन सी सम्भावना है ? १. अर्थात् वृक्ष और शिंशपा इन दोनों में अगर अभेद है वृक्षात्मक है तो फिर यह कैसे कह सकते हैं वृक्ष शिंशपात्मक नहीं है 1 यदि यह कहें कि ( प्र० ) अपने स्वरूप में अवस्थित शिशपावृक्ष रूप धर्मी एवं वृक्षत्व और शिशपात्व रूप दोनों धर्मं, ये तीनों वस्तुतः एक ही हैं । अतः धर्मी के गृहीत होने पर वृक्षत्व और शिशपात्व रूप उसके धर्म भी उसी ज्ञान से गृहीत हो जाते हैं । जैसा कहा गया है कि "तस्मात् किसी भी धर्मी के प्रत्यक्ष होने पर For Private And Personal एवं इस कारण शिंशपा
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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