SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली प्रसिद्धं च तदन्विते इत्यव्यापकम् । अत्रैके समानतन्त्रप्रसिद्धया केवलान्वयिनः केवलव्यतिरेकिणश्च परिग्रह इति वदन्ति । अपरे तु व्यस्तसमस्तं लक्षणं वदन्ति । अनुमेयेन सम्बद्धं प्रसिद्धं च तदन्वित इति अन्वयिनो लक्षणम् । अनुमेयेन सम्बद्धं तद्विपरीते च नास्त्येवेति व्यतिरेकिण इति । समस्तं लक्षणमन्वयव्यतिरेकिण इति । साध्यसाधनत्वं सामान्यलक्षणं त्रयाणाम् । यथा प्रमाणानां यथार्थपरिच्छेदकत्वं सामान्यलक्षणम् । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४८६ विशेषण के न रहने से हेतु का प्रकृतलक्षण ( केवल ) व्यतिरेकी हेतु में अव्याप्त है । केवलान्वयि हेतु और केवलव्यतिरेकी हेतु इन दोनों में कथित अव्याप्ति का समाधान कोई इस प्रकार करते हैं कि केवलान्वयि हेतु और केवलव्यतिरेकी हेतु इन दोनों में हेतुत्व का व्यवहार समानतन्त्र ( न्याय दर्शन ) के अनुसार समझना चाहिए ( सिद्धान्ततः वैशेषिक मत से वे दोनों हेतु नहीं है ) । कोई ( इन दोनों को वैशेषिक मत से भी हेतु मानते हुए ) हेतु के लक्षणवाक्य को सम्पूर्ण और खण्डशः दोनों प्रकार से लक्षण का बोधक मान कर उनमें अव्याप्ति दोष का परिहार करते हैं । तदनुसार 'यदनुमेयेन सम्बद्धम्' तीन लक्षणवाक्य निष्पन्न होते हैं इत्यादि श्लोक से निम्न लिखित ( १ ) यदनुमेयेन सम्बद्धं प्रसिद्धञ्च तदन्विते । ( अर्थात् जो पक्ष और सपक्ष दोनों में ही रहे वही हेतु है ) । हेतु का यह लक्षण ( केवल ) अन्वयी ( 'विशेषोऽभिधेयः प्रमेयत्वात्' इस अनुमान के प्रमेयत्व ) हेतु का है ( अर्थात् हेतु के इस लक्षण में 'तदभावे च नास्त्येव' इस वाक्य से कथित विपक्षावृत्तित्व का प्रवेश नहीं है, अतः केवलान्वयि स्थल में विपक्ष की अप्रसिद्धि से हेतु लक्षण की अव्याप्ति नहीं है ) । ( २ ) यदनुमेयेन सम्बद्धं तदभावे च नास्त्येव । अर्थात् पक्ष में रहे और विपक्ष में न रहे वही 'हेतु' है । हेतु का यह लक्षण ( केवल ) व्यतिरेकी हेतु के लिए है । अतः 'जीवच्छरीरं सात्मकं प्राणादिमत्त्वात्' इत्यादि व्यतिरेकी हेतु में सपक्ष की अप्रसिद्धि के कारण अव्याप्ति नहीं है । क्योंकि हेतु के इस लक्षण में 'प्रसिद्धश्च तदन्विते' इस वाक्य के द्वारा कथित 'सपक्षसत्त्व' का निवेश नहीं है ) | ( ३ ) ' यदनुमेयेन सम्बद्धम्' इत्यादि संपूर्ण श्लोक के द्वारा कथित लक्षण अन्ययव्यतिरेकी हेतु का है, क्योंकि इसमें पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व एवं विपक्षासत्त्व हेतु के ये तीनों ही लक्षण विद्यमान रहते हैं । For Private And Personal कथित तीनों हेतुओं में समान रूप से रहनेवाला लक्षण यही है कि 'जो साध्य का साधन करे वही हेतु है' जैसे 'जो यथार्थ ज्ञान को उत्पन्न करे वही प्रमाण है' यह सभी प्रमाणों का साधारण लक्षण है । ६२
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy