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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४४४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे प्रत्यक्ष न्यायकन्दली प्रामाण्यमभिमतम्, परिच्छेदहेतुत्वात् । संशयविपर्ययव्युदासो विद्यानिरूपणस्य प्रकृतत्वात् । अक्षं प्रतीत्य यदुत्पद्यते तत् प्रत्यक्षमित्युक्तेऽतिप्रसिद्धत्वाद् बाह्येन्द्रियजमेव प्रत्यक्षमिति कस्यचिद् भ्रान्तिः स्यात्, तनिवृत्त्यर्थमक्षमक्षमिति वीप्सा समस्तेन्द्रियावरोधार्था कृता । कुगतिप्रादय इति प्रादिसमासः। प्रतिगतमक्षं प्रत्यक्षमित्यनेनास्याभिधेयलिङ्गता, प्रत्यक्षं ज्ञानं प्रत्यक्षा बुद्धिः प्रत्यक्षः प्रत्यय इति । अक्षशब्दस्य बहुष्वर्थेषु निरूढत्वाद् विशिनष्टि - अक्षाणीन्द्रियाणि।। तानि च सांख्यैरेकादशविधान्युक्तानि, तन्निवत्त्यर्थं परिसंख्यां करोतिघ्राणरसनचक्षुस्त्वकछोत्रमनांसीति अक्षजं विज्ञानं प्रत्यक्षमित्युक्त स्मृतिरपि प्रत्यक्षा स्यात्, अतस्तामसद्विषयां दर्शयितं प्रत्यक्षविषयं निदिशति-तद्धीति । हिशब्दोऽवधारणे। तत् प्रत्यक्षं द्रव्यादिष्वेव द्रव्यगुणकर्मसामान्येष्वेवोत्पद्यते, न विशेषसमवाययोरित्यर्थः। द्रव्यस्य प्राधान्यात प्रथमं तत्प्रत्यक्षोत्पत्तिमाहद्रव्ये तावदिति । तावच्छब्दः क्रमार्थः। महति द्रव्ये पृथिव्यप्तेजोलक्षणे प्रत्यक्ष भवति, कुतः कारणादित्यत्राह-अनेकद्रव्यवत्त्वादिति । अनेकद्रव्यवत्त्वं भूयोऽवयवाश्रितत्वम् । रूपस्य प्रकाश उद्भवसमाख्यातो रूपस्य धर्मः, यदभावाद् वारिस्थे तेजसि प्रत्यक्षाभावः । चतुष्टयसन्निकर्षादात्मनो मनसा संयोगो मनस इन्द्रियेण इन्द्रियस्यार्थे तस्मात् कारणकलापाद्धर्मादिसामग्रये च सति धर्माधर्मदिक्कालादीनां समग्राणां भावे सति प्रत्यक्षं स्यात् । परमाणौ द्वयणके च प्रत्यक्षाभावान्महतीत्युक्तम् । अवयवभूयस्त्वप्रकर्षाप्रकर्षाभ्यामवयविनि लिङ्ग परिवत्तित होता रहता है, जैसे कि 'प्रत्यक्ष ज्ञानम्, प्रत्यक्षा बुद्धिः, प्रत्यक्षः प्रत्ययः' इत्यादि । 'अक्ष' शब्द अनेक अर्थों में अनादि काल से प्रसिद्ध (निरूढ़ ) है, अत: लिखते हैं कि 'अक्षाणि इन्द्रियाणि' । सांख्यदर्शन के आचार्यों ने ग्यारह इन्द्रियां कही हैं, उसी पक्ष को खण्डन करने के लिए 'घ्राणरसनचक्षुस्त्वक्छ्रोत्रमनांसि' इत्यादि वाक्य के द्वारा इन्द्रियों की संख्या का निर्धारण करते हैं। 'इन्द्रिय के द्वारा उत्पन्न ज्ञान प्रत्यक्ष है (प्रत्यक्ष लक्षण के लिए) केवल इतना कहने से स्मृति भी प्रत्यक्ष कहलाएगी अतः स्मृति के विषयों को विद्यमान रहना आवश्यक नहीं है' यह समझाने के लिए 'तद्धि' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा प्रत्यक्ष के विषयों का निर्देश करते हैं। (तद्धि' इस शब्द में प्रयुक्त ) 'हि' शब्द 'इस अवधारण' का बोधक है, कि यह ( उक्त लक्षण से लक्षित ) प्रत्यक्ष द्रव्यादि विषयों का ही होता है । अभिप्राय यह है कि यह प्रत्यक्ष ज्ञान द्रव्य, गुण, कर्म और सामान्य इन चार पदार्थों का ही होता है, विशेष एवं समवाय इन दोनों विषयों का नहीं। इन सबों में द्रव्य ही प्रधान है, अतः 'द्रव्ये तावत्' इत्यादि वाक्य के द्वारा द्रव्य के प्रत्यक्ष की उत्पत्ति ही सबसे पहिले कही गया है। इस वाक्य का 'तावत्' शब्द 'क्रम का बोधक है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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