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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम्] भाषानुवादसहितम् ४३९ प्रशस्तपादभाष्यम् तत्तु त्रिविधम् --संस्कारपाटवाद्धातुदोषाददृष्टाच्च । तत्र संस्कारपाटवात् तावत् कामी क्रुद्धो वा यदा यमर्थमावृतश्चिन्तयन् स्वपिति, तदा सैव चिन्तासन्ततिः प्रत्यक्षाकारा सञ्जायते । धातुदोषाद् वातप्रकृतिस्तद् वह तीन प्रकार का है, (१) संस्कार की पटुता से उत्पन्न (२) धातु के दोष से उत्पन्न एवं (३) अदृष्ट से उत्पन्न । इनमें संस्कार की पटुता से उत्पन्न स्वप्न का उदाहरण यह है कि जिस समय कामी अथवा क्रुद्ध पुरुष जिस वस्तु की बराबर चिन्ता करते हुए सोता है, उस समय वही चिन्तासमूह प्रत्यक्ष का रूप ले लेती है। न्यायकन्दली संस्काराच्च पूर्वानुभूतविषयादसत्सु देशकालव्यवहितेषु विषयेषु प्रत्यक्षाकारमपरोक्षसंवेदनाकारं स्वप्नज्ञानमुत्पद्यते। तत्तु त्रिविधम् । कुत इत्याह -- संस्कारपाटवादिति । संस्कारपाटवात् तावत् कामी क्रुद्धो वा यदा यमर्थं प्रियतमां शत्रु वादृतोऽनुमन्यमानश्चिन्तयन् स्वपिति, तदा सैव चिन्तासन्तति: स्मृतिसन्ततिः संस्कारातिशयात् प्रत्यक्षाकारा साक्षादर्थावभासिनी सजायते। शरीरधारणाद् धातवो क्सासृमांसदोमज्जास्थिशुक्रात्मानः, तेषां दोषाद् वातादिदूषितत्वाद् विपर्ययो भवतीत्याहवातप्रकृतिर्यदि वा कुतश्चिन्निमित्तादुपचितेन वातेन दूषितः स्वात्मन आकाशगमनमितस्ततो धावनमित्यादिकं पश्यति । पित्तप्रकृतिः पित्तदूषितो वा अग्निप्रवेशकनकपर्वताभ्युदितार्कमण्डलादिकं पश्यति । श्लेष्मप्रकृतिः श्लेष्मदूषितो वा सरित्समुद्रप्रतरणहिमपर्वतादीत् पश्यति । स्वयमनुभूतेषु परत्राप्रायः विभिन्न काल के और विभिन्न देश के विषयों में भी 'प्रत्यक्षाकार' अर्थात् अपरोक्ष आकार के 'स्वप्न' ज्ञान की उत्पत्ति होती है। ( इस स्वप्न ज्ञान के) 'स्वाप' अर्थात् निद्रा नाम का आत्मा और मन का संयोग और पहिले के अनुभव के द्वारा ज्ञात विषयक संस्कार भी कारण हैं । (प्र.) यह तीन प्रकार का क्यों है ? इस प्रश्न का उत्तर संस्कारपाटवात्' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा दिया गया है। कामी अथवा क्रुद्ध व्यक्ति संस्कार की पटुता से जिस समय 'जिस अर्थ को अर्थात् प्रियतमा अथवा शत्रु को आदर से' अर्थात् अनन्यचित्त होकर चिन्तन करते हुए सोता है, उस समय उसी चिन्तन' का अर्थात् स्मृति का समुदाय संस्कार की विलक्षणता से प्रत्यक्षाकार अर्थात् अर्थों को साक्षात् प्रकाशित करने वाला हो जाता है । शरीर को 'धारण' करने के हेतु से वसा, मांस, शोणित, मेद, मज्जा, अस्थि और शुक्र इन सातों का समुदाय 'धातु' कहलाता है। इनके दूषित हो जाने पर वायु प्रभृति दूषित हो जाते हैं। दूषित वायु प्रभृति के द्वारा 'विपर्यय रूप' स्वप्नज्ञान की For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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