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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४०५ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् कर्मोत्पद्यते तदैवापेक्षाबुद्धिरुत्पद्यते । कर्मणा चावयवान्तराद् विमागः क्रियते, परत्वस्योत्पत्तिरित्येकः कालः । ततो यस्मिन्नेव कालेऽवयवविभागाद् द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशस्तस्मिन्नेव काले सामान्यबुद्धिरुत्पद्यते, तदनन्तरं संयोगविनाशाद् द्रव्यविनाशः, सामान्यक्रिया ) और अपेक्षाबुद्धि दोनों एक ही समय उत्पन्न होती हैं, एवं क्रिया उसी समय दोनों अवयवों में विभाग को उत्पन्न करती है, एवं ( अपेक्षाबुद्धि ) परत्वादि गुणों को उत्पन्न करती है। इतने सारे काम एक ही समय होते हैं। इसके बाद जिस समय उक्त विभाग से द्रव्य के उत्पादक संयोग का विनाश होता है, उसी समय (परत्वादिगुणों में रहनेवाली ) सामान्य (जाति) विषयक बुद्धि मी उत्पन्न होती है। इसके बाद ( उक्त संयोग के नाश से) न्यायकन्दली संयोगविनाशः, तस्मिन्नेव काले परत्वसामान्यज्ञानमुत्पद्यते। तदनन्तरं संयोगविनाशाद् द्रव्यविनाशः, सामान्यबुद्धश्चापेक्षाबुद्धेरपि विनाश इत्येकः कालः । ततो द्रव्यापेक्षाबुद्धयोविनाशात् परत्वस्य विनाशः, प्रत्येकमन्यत्रोभयोरपि विनाश प्रति कारणत्वप्रतीतेः । इह चान्यतरविशेषानवधारणादुभयोरपि विनाशं प्रति कारणत्वम् । आधारभूत द्रव्य के अवयव में क्रिया उत्पन्न होती है, उसी समय क्रिया से उसके आधारभूत अवयव द्रव्य का दूसरे अवयव से विभाग उत्पन्न होता है, एवं ( उक्त अवयवी द्रव्य में ) परत्व की भी उत्पत्ति होती है। इतने सारे काम एक ही समय होते हैं । इसके बाद जिस समय अवयवों के विभाग से द्रव्य ( अवयवि ) के उत्पादक संयोग का विनाश होता है, उसी समय परत्व ( में रहनेवाले ) सामान्य का ज्ञान भी उत्पन्न होता है। इसके बाद (अवयवों के) संयोग के विनाश से द्रव्य का विनाश होता है, एवं कथित सामान्य विषयक ज्ञान से अपेक्षा बुद्धि का भी विनाश होता है। इतने सारे काम एक ही समय होते हैं। इसके बाद जो परत्व का विनाश होता है वह द्रव्य विनाश और अपेक्षाबुद्धि का विनाश इन दोनों से ही होता है। क्योंकि इन दोनों में से प्रत्येक में परत्व विनाश की कारणता स्वीकृत हो चुकी है। एवं दोनों में से किसी एक में किसी विशिष्टता की प्रतीति नहीं होती, जिससे कि किसी एक को ही कारण माने दूसरे को नहीं, अतः (समानयुक्ति रहने के कारण) दोनों को ही परत्व-विनाश का कारण मानना पड़ता है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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