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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ३६७ प्रशस्तपादभाष्यम् कालकतयोरपि कथम ? वर्तमानकालयोरनियतदिगदेशसंयुक्तयोर्युवस्थविरयो रूढश्मश्रुकार्कश्यवलिपलितादिसानिध्ये सत्येकस्य (प्र० ) कालिक ( कालकृत ) परत्व और अपरत्व की उत्पत्ति किस प्रकार होती है ? ( उ० ) वर्तमान काल में अवस्थित किसी भी दिकप्रदेश के साथ संयुक्त युवा पुरुष में कडी मूछ और गठित शरीर ( प्रभृति असाधारण ) स्थिति, और किसी भी दिक् प्रदेश से संयुक्त वृद्ध पुरुष में पके न्यायकन्दली नापि विप्रकृष्टोऽयमिति प्रतीत्यैव तदपेक्षया सन्निकृष्टबुद्धयुदयः, किन्तु संयोगाल्पीयस्त्वसहचरितं पिण्डं प्रतीत्यैव तदपेक्षया संयोगभूयस्त्ववति विप्रकृष्टबुद्धिः। एवं संयोगभूयस्त्वसहचरितं पिण्डं प्रतीत्यैव तदपेक्षया संयोगाल्पीयस्त्ववति सन्निकृष्टबुद्धयुत्पत्तिरिति न परस्परापेक्षित्वमनयोः । कालकृतयोरपि कथम् ? दिककृतयोस्तावत्परत्वापरत्वयोरुत्पत्तिः दोनों बुद्धियों के कारणीभूत परत्व और अपरत्व इन दोनों की सत्ता ही उठ जाएगी (उ०) दोनों की सत्ता के उठ जाने की आपत्ति नहीं है, क्योंकि हम ऐसा नहीं मानते, क्योंकि 'ततः' अर्थात् इस विप्रकृष्ट बुद्धि के बाद उसी के साहाय्य से बहुत से संयोगों से युक्त दूसरे उस पिण्ड में परत्व की उत्पत्ति होती है। इस परत्व का समवायिकारण उक्त पिण्ड ही है, एवं उन दिशाओं के साथ उस पिण्ड का संयोग ही उसका असमवायकारण है। अभिप्राय यह है कि द्रष्टा पुरुष के शरीर के मध्यवर्ती बहुत से दिग्देशों के संयोग से युक्त होने के कारण 'विप्रकृष्ट' अर्थात् दूर देश को अवधि मानकर, उससे अल्प संयोग से युक्त मध्यवर्ती देश में 'संनिकृष्ट बुद्धि' अर्थात् 'उससे यह समीप है' इस आकर की बुद्धि उक्त द्रष्टा पुरुष को होती है। इस संनिकृष्ट बुद्धिरूप निमित्तकारण से उक्त पिण्डरूप समावायिका रण में परस्व की उत्पत्ति होती है, जिसका अल्प संयोग से युक्त दिक्प्रदेश और पिण्ड का संयोग असमवायिकारण है। 'संनिकृष्टोsयम्' अर्थात् यह समीप' है इस प्रकार की संनिकृष्ट बुद्धि से ही उसकी अपेक्षा 'यह दूर है' इस आकार की विप्रकृष्ट बुद्धि उत्पन्न होती है। एवं विप्रकृष्टोऽयम्' इस बुद्धि से ही इसकी अपेक्षा 'यह समीप है' इस आकार की संनिकृष्ट बुद्धि उत्पन्न होती है। किन्तु उक्त प्रदेशों के संयोगों की अल्पता के साथ ज्ञात द्रव्य (पिण्ड ) की प्रतीति से ही ( इस पिण्ड की) अपेक्षा अधिक दिक्पदेशों के संयोगों से युक्त पिण्ड में विप्रकृष्ट बुद्धि उत्पन्न होती है । इसी प्रकार दिक्प्रदेशों के अधिक संयोगों के साथ ज्ञात द्रव्य की प्रतीति से ही उसकी अपेक्षा अल्प दिक्प्रदेशों के संयोगवाले पिण्ड में संनिकृष्ट बुद्धि उत्पन्न होती है। अतः परस्परापेक्ष होने के कारण परत्व और अपरत्व दोनों की असत्ता की आपत्ति नहीं है। ___'कालकृतयोरपि कथम् ? अर्थात् 'कथम्' इत्यादि सन्दर्भ से प्रश्न करते हैं कि दिक्कृत परत्व और अपरत्व की उत्पत्ति तो उपपावित हुई, किन्तु कालिक परत्व और For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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