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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३६२ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे विभाग प्रशस्तपादभाष्यम् तन्तुवीरणयोर्वा संयोगे सति द्रव्यानुत्पत्तौ पूर्वोक्तेन विधानेनाश्रयविनाशसंयोगाभ्यां तन्तुवीरणविभागविनाश इति । अथवा ( इस स्थिति में भी आश्रय के नाश से विभाग का नाश हो सकता है, जहाँ ) तन्तु और वोरण ( तृणविशेष ) में संयोग होता है। इस संयोग से किसी द्रव्य की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि यह विजातीय दो द्रव्यों का संयोग है। पहिले कथित रीति के अनुसार आश्रय का विनाश और संयोग इन दोनों से तन्तु और वीरण के विभाग का नाश होता है। न्यायकन्दली समं विभागं करोत्येव, ततो विभागाच्च परमाणोराकाशसंयोगनिवृत्तावुत्तरसंयोगे सति तदाश्रितस्य कर्मणो विनाशो भवत्येव । समानजातीयसंयोगे सति द्रव्योत्पत्तावाश्रयविनाशाद् विभागकर्मणोविनाशः कथितः, सम्प्रति विजातीयसंयोगे द्रव्यानुत्पत्तौ संयोगाश्रयविनाशाभ्यां विभागविनाशं कथयति-तन्तुवीरणयोर्वां संयोगे सति द्रव्यानुत्पत्तौ पूर्वोक्तेन विधानेनेति । तन्त्वारम्भकांशो कर्मोत्पत्तिसमकालं वीरणे कर्म, ततोऽशुक्रियया अंश्वन्तराद् विभागो वोरणकर्मणा च तस्य विभज्यमानावयवेन तन्तुना आकाशदेशेन च समं विभागः क्रियते, ततोऽशुविभागादंशुसंयोगविनाशो वीरणविभागाच्च को अवश्य ही उत्पन्न करती है । इसके बाद विभाग के द्वारा परमाणु और आकाश के संयोग के नष्ट हो जाने पर उत्तर संयोग के बाद परमाणु में रननेवाली क्रिया का भी अवश्य विनाश होता है। ( समानजातीयद्रव्यों के संयोग के रहने पर ) द्रव्य की उत्पत्ति के बाद आश्रय के विनाश से विभाग और क्रिया दोनों का ही नाश अभी कहा गया है । अब विजातीय द्रव्यों के संयोग के रहने के कारण द्रव्य की उत्पत्ति न होने पर भी संयोग और आश्रय के विनाश, इन दोनों से विभाग का विनाश तन्तुवी रणयोर्वा संयोगे सति द्रव्यानुत्पत्तौ पूर्वोक्तेन विधानेन' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा कहा गया है। इसकी यही प्रक्रिया है कि तन्तु के उत्पादक अशु में क्रिया की उत्पत्ति के समय ही वीरण ( तृण विशेष ) में भी क्रिया उत्पन्न होती है। इसके बाद अंशु की क्रिया से दूसरे अंशु के साथ उसका विभाग उत्पन्न होता है । वीरण की क्रिया से अवयव से विभक्त होते हुए तन्तु के साथ वीरण का, एवं आकाशादि देशों के साथ भी विभाग उत्पन्न होते हैं । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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