________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
३८७
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् विभागं करोति, तदैवाण्वन्तरेऽपि कर्म । ततो यस्मिन्नेव काले विभागाद् द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशः, तदैवाण्वन्तरकर्मणा द्वयणुकाण्वोर्विभागः क्रियते । ततो यस्मिन्नेव काले विभागाद् द्वथणुकाणुसंयोगस्य विनाशः, तस्मिन्नेव काले संयोगविनाशाद् द्वयणुकस्य विनाशः ।
उत्तर देश के साथ तन्तु का संयोग भी उक्त स्थल में नहीं है, । अतः कथित युक्ति से ) तन्तु प्रभृति अनित्य द्रव्यों में रहनेवाली उक्त क्रिया क्षणिक न होकर अधिक समय तक रहेगी एवं परमाणु प्रभृति नित्य द्रव्य में रहनेवाली क्रिया तो नित्य ही हो जाएगी। (प्र०) कैसे ? ( अर्थात् नित्य द्रव्य में रहनेवाली क्रियाओं में नित्यत्व की आपत्ति किस प्रकार किस स्थिति में और किस स्थल में होगी? ( उ० ) जिस समय ( जहाँ ) जलीय द्वयणक के उत्पादक जलीय परमाणु में उत्पन्न क्रिया ( जलीय व्यणुक के अनुत्पादक ) दूसरे परमाणु के साथ ( जलीय द्वयणुक के ) विभाग को उत्पन्न करती है, उसी क्षण में ( जलीय द्वयणुक ) के उत्पादक निष्क्रिय दूसरे परमाणु में भी क्रिया उत्पन्न होती है। इसके बाद जिस क्षण में विभाग के द्वारा द्रव्य के उत्पादक संयोग का विनाश होता है, उसी क्षण ( जलीय द्वयणुक के अनुत्पादक ) दूसरे परमाणु की क्रिया से जलीयद्वयणुक और ( उदासीन ) परमाणु इन दोनों में भी विभाग उत्पन्न होता है। इसके अनन्तर जिस क्षण में ( इस जलीय द्वयणुक और उदासीन परमाणु के ) विभाग से जलीय द्वयणुक और ( उदासीन ) परमाणु इन दोनों के संयोग का नाश होता है, उसी क्षण ( द्वयणुक के उत्पादक जलीय दोनों परमाणुओं के ) संयोग के नाश से जलीय
न्यायकन्दली
विनाशात् तदारब्धस्य द्वयणुकस्य विनाशः, तस्मिन् द्वयणुके विनष्टे तदाश्रितस्य द्वयणुकाणुविभागस्य विनाशः, ततो विभागस्य कारणस्याभावात् परमाणोराकाशदेशविभागानुत्पादे पूर्वसंयोगानिवृत्तावुत्तरसंयोगस्य विरोधिगुणस्य
के द्वारा उत्पन्न द्वथणुक का विनाश होता है, उसी समय द्वयणुकविनाश के कारण उसमें रहनेवाले विभाग का भी नाश हो जाता है। इसके बाद विभाग रूप कारण के न रहने से परमाणु का आकाशादि देशों के साथ विभाग उत्पन्न न हो सकेगा, जिससे कि पहिले संयोग का विनाश भी रूक जाएगा। ( इस विनाश के रुक जाने पर ) उत्तर संयोग रूप
For Private And Personal