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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ३८१ प्रशस्तपादभाष्यम् वात् परस्परतः संयोगविभागाभाव इति । दिगादीनां तु पृथग्गतिमत्त्वाभावादिति परस्परेण संयोगविभागाभाव इति । पट के अलग से स्वतन्त्र आश्रय नहीं रहते, अतः यह सिद्ध होता है कि इन दोनों में संयोग और (तन्मूलक) विभाग नहीं होते। दिगादि (विभुद्रव्यों में) स्वतन्त्र गति न रहने के कारण ही उनमें परस्पर संयोग और विभाग दोनों ही नहीं होते। न्यायकन्दली मत्त्वात् संयोगविभागौ सिद्धाविति। पूर्वमसत्यपि पृथग्गतिमत्त्वे त्वगिन्द्रियशरीरयोः पृथगाश्रयायित्वे सति संयोगसंभवादनित्यानां पृथगाश्रयाश्रयित्वं युतसिद्धिर्न पृथग्गमनमित्युक्तम् । ___ सम्प्रत्येनमेवार्थं समर्थयितुं तन्तुपटयोरन्यतरस्य पृथग्गतिमत्त्वासंभवेऽपि पृथगाश्रयत्वाभावात् संयोगविभागाभावं दर्शयति--तन्तुपटयोरित्यादिना। विभूनां तु द्वयोरन्यतरस्य वा पृथग्गमनाभावान्न परस्परेण संयोगः, नापि विभागः, तस्य संयोगपूर्वकत्वात् । किं तु स्वरूपस्थितिमात्रमित्याह--दिगादीनामिति । एतावता सन्दर्भेणेतदुपपादितम्, हस्ते गच्छति शरीरं न गच्छतीति, एतावता न युतसिद्धिः । यदि तु हस्तशरीरयोः पृथगाश्रयाश्रयित्वं स्यात्, तदा भवेदनयोर्युतसिद्धता । तत्तु नास्ति, शरीरस्य हस्ते समवेतत्वात्। अनित्य द्रव्य पृथक् गतिशील हैं, एवं इनमें परस्पर संयोग और विभाग भी होते हैं। अतः पृथक् गमनशीलता ही अनित्यों को युतसिद्धि है। इसी अभिप्राय से 'अणु' इत्यादि सन्दर्भ लिखे गये हैं । अर्थात् परमाणु और आकाश इन दोनों का दूसरा कोई आश्रय न रहने पर भी चूंकि दोनों में से एक (अर्थात् परमाणु) स्वतन्त्र रूप से गतिशील है । अतः आकाश और परमाणु दोनों के युद्धसिद्ध होने के कारण) इन दोनों में संयोग और विभाग की सिद्धि होती है। पहिले पृथक् गति न रहने पर भी त्वगिन्द्रिय और शरीर में पृथगाश्रयायित्व के रहने के कारण दोनों में संयोग सम्भव होता है। इसी लिए कहा गया है कि पृथगाश्रयायित्व ही अनित्यों की युतसिद्धि है, पृथक् गमन नहीं । तन्तु और पट इन दोनों में से एक में पृथक् गति की सम्भावना न रहने पर भी, पृथक् आश्रयत्व के न रहने से ही दोनों में संयोग और विभाग नहीं होते, यही बात 'तन्तुपटयोः' इत्यादि सन्दर्भ से दिखलाया गया है। "दिगादीनाम्' इत्यादि सन्दर्भ से यह प्रतिपादित हुआ है कि दो विभुद्रव्यों में या दो में से किसी एक विभुद्रव्य में भी पृथक् गति नहीं है। अतः दो विभुद्रव्यों में परस्पर संयोग नहीं होता । संयोग के न होने के कारण ही दोनों में विभाग भी नहीं होता, क्योंकि संयुक्तद्रव्यों में ही विभाग भी होता है। इन पङ्क्तियों के द्वारा यही कहा गया है कि हाथ के चलने पर भी शरीर नहीं चलता, For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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