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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३४३ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली यदेतेषु सम्भूय व्याप्रियमाणेष्वसन्नेव पटः संभवति । असतोऽसम्बद्धस्य जन्यत्वे ऽतिप्रसक्तिरिति चेन्नैतत्, तन्तुजातीयस्य पटजातीय एव सामर्थ्यात् । कुत एतत् ? त्वत्पक्षेऽपि कुत एतत् ? तन्तुष्वेव पटात्मता, न सर्वत्रेति ? वस्तुस्वाभाव्यादिति चेत् ? सैवात्रापि भविष्यति । अत एव चोपादाननियमः, अन्वयव्यतिरेकाभ्यां तज्जातीयनियमने तज्जातीयस्य शक्त्यवधारणात् । यत् पुनरेतत् कार्यकारणयोरव्यतिरेकात् कारणावस्थानादेव । कार्यस्याप्यवस्थानमिति, तदसिद्धमसिद्धेन साधितम्, कार्यकारणयोः स्वरूपशक्तिसंस्थानभेदस्य प्रत्यक्षसिद्धत्वात् । प्रधानात्मकविश्वस्यातीन्द्रियत्वप्रसङ्गाच्च । तद्देशत्वं तु तदाश्रितत्वमात्रनिबन्धनमेवेत्यलं बृद्धष्वतिनिर्बन्धेन । एतत् तु विमृश्यतां केयं शक्तिरिति ? अतीन्द्रिया काचिदित्यार्याः । तदयुक्तम्, तस्याः सद्भावे प्रमाणाभावात्। अथ मन्यसे यथाभूतादेव करते हैं तब पहिले से असत् होनेपर भी पट सत् हो जाता है। (१०) पहिले से बिलकुल असत् एवं कारणों के साथ बिलकुल असम्बद्ध कार्य की अगर उत्पत्ति मानें तो 'अतिप्रसक्ति' (अर्थात् कपालादि कारणों से भी पट की उत्पत्ति ) होगी। (उ०) ( यह अतिप्रसङ्ग) नहीं होगा, क्योंकि तन्तु जातीय वस्तुओं में पट जाति की वस्तुओं के उत्पादन का ही सामर्थ्य है। (प्र०) यही क्यों है ? (उ०) (इसके उत्तर में हम भी पूछ सकते हैं कि) तन्तु ही पटस्वरूप क्यों हैं, (कपालादि पटस्वरूप क्यों नहीं हैं), अगर इसका आप यह उत्तर दें कि (प्र.) यह इसका स्वभाव है ? (उ०) तो फिर यही उत्तर मेरे लिए भी होगा। अतएव यह नियम भी ठीक बैठता है कि 'अमुक वस्तु ही अमुक वस्तु का उपादान है', क्योंकि अन्वय और व्यतिरेक से तज्जातीय (पटादिजातीय) वस्तुओं के उत्पादन की शक्ति तज्जातीय (तन्त्वादि. जातीय वस्तुओं में ही निश्चित है। आपने जो यह कहा कि कार्य और कारण अभिन्न हैं, अतः कारण अगर सत् हो तो फिर उससे अभिन्न कार्य भी सत् ही है' यह तो असिद्ध (हेतु) से ही असिद्ध का साधन करना है (कारण और कार्य का अभेव ही सिद्ध नहीं है), क्योंकि कार्य और कारण दोनों के स्वरूप (आकार) शक्ति और विन्यास सभी में विभिन्नता देखी जाती है। अगर पूरा संसार ही प्रकृति से अभिन्न हो तो फिर पूरा संसार ही अतीन्द्रिय होगा। कार्य में जो उपादान का अन्वय देखा जाता है, उसका मूल तो इतना ही है कि वही कार्य का आश्रय है (ओर कारण नहीं)। यह विचारिये कि यह 'शक्ति' क्या वस्तु है ? आर्यों (मीमांसकों) का कहना है कि 'शक्ति एक अतीन्द्रिय स्वतन्त्र पदार्थ है' किन्तु उनका यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि उसको सत्ता में कोई प्रमाण नहीं है। अगर आप (मीमांसक) यह मानते हों For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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