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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३३५ संयोगः संयुक्तप्रत्ययनिमित्तम् । स च द्रव्यगुणकर्महेतुः । ( ये दोनों संयुक्त हैं ) संयुक्त विपथक ( इस प्रकार की ) प्रतीति का कारण ही 'संयोग' है । यह द्रव्य, गुण और कर्म तीनों का कारण है । न्यायकन्दली क्रमेणोपजायमानेषु द्रव्येषु सामान्यवद् गुणस्य समवायादर्शनात् । अथेदं सामान्यमेव भविष्यति ? न, पिण्डान्तराननुसन्धाने सामान्यबुद्धिवत् पृथक्त्वबुद्धेरभावात् । संयोगसद्भावनिरूपणार्थमाह-संयोगः संयुक्तप्रत्ययनिमित्तमिति । अस्ति तावदिदमनेन संयुक्तमिति प्रत्ययो लौकिकानाम्, न चास्य रूपादयो निमित्तं तत्प्रत्ययविलक्षणत्वात् । अतो यदस्य निमित्तं स संयोगः । नैरन्तर्यनिबन्धनोऽयं प्रत्यय इति चेत् ? किं द्रव्ययोः परस्परसंश्लेषो नैरन्तर्यम् ? अन्तराभावो वा ? आद्ये कल्पे न किञ्चिदतिरिक्तमुक्तं स्यात्, द्रव्ययोः परस्परोपसंश्लेष एव हि नः संयोगः । द्वितीये कल्पे सान्तरयोरन्तराभावे संयोगादन्यः को हेतुरिति गुण का समवाय उपलब्ध नहीं होता हैं । (प्र०) तो फिर यह पृथक्त्व जातिरूप ही होगा, गुण नहीं ? ( उ० ) इसलिए यह सामान्य नहीं है कि इसकी प्रतीति एक द्रव्य में भी होती है, किन्तु पृथक्त्व की प्रतीति आश्रय और अवधि दोनों की प्रतीति के बिना नहीं होती है । For Private And Personal संयोग का अस्तित्व समझाने के लिए 'संयोगः संयुक्तप्रत्ययनिमित्तम्' इत्यादि पङ्क्ति लिखते हैं । ( अभिप्राय यह है कि ) ' वह इसके साथ संयुक्त है' इस प्रकार की प्रतीति साधारण जनों को भी होती है । इस प्रतीति के कारण रूपादि नहीं हैं, क्योंकि रूपादि से जितनी प्रतीतियाँ उत्पन्न होती हैं, उनसे यह प्रतीति विलक्षण प्रकार की है । अतः उक्त प्रतीति का जो कारण है वही संयोग है । (प्र०) उक्त प्रतीति तो । दोनों अवधियों में अन्तर के न (नैरन्तर्य) रहने से होती है ( उ० ) यह 'नैरन्तयं' क्या वस्तु है ? दो द्रव्यों का परस्पर मिलन है ? या दोनों में व्यवधान का अभाव ? इनमें प्रथम पक्ष को स्वीकार करना संयोग को ही स्वीकार करना है । दूसरे पक्ष को स्वीकार करने पर पूछना है कि संयोग को छोड़कर परस्पर मिलित दो वस्तुओं के बीच में व्यवधान न रहने का और भी क्या कारण है ? (प्र०) आपके मत से दो असंयुक्त वस्तुओं में संयोग का जो कारण है, वही मेरे मत से दो अलग रहनेवाली वस्तुओं के बीच अन्तर न रहने का भी कारण है । ( उ०) मान लिया कि वही कारण है, (किन्तु पूछना यह है कि वह कारण अपने आश्रय को दूसरे देश से सम्बद्ध करके उस अन्तर को मिटाता है या दूसरे देश के साथ सम्बद्ध न करके ही ? अगर दूसरा पक्ष
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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