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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २७६ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् पेक्षाबुद्धविनश्यता, द्वित्वसामान्यतत्सम्बन्धतज्ज्ञानेभ्यो द्वित्वगुणबुद्धेरुत्पद्यमानतेत्येकः कालः । तत इदानीमपेक्षाबुद्धिविनाशाद् द्वित्वगुणस्य अपेक्षाबुद्धि के विनाश की सम्भावना उत्पन्न होती है । द्वित्व संख्या रूप गुण का द्वित्वसामान्य के साथ सम्बन्ध और द्वित्व गुण में द्वित्वसामान्य का ज्ञान इन सबों से गुणरूप द्वित्वविषयक बुद्धि की उत्पत्ति की सम्भावना, इतने काम एक काल में होते हैं। इसके बाद उसी समय अपेक्षाबुद्धि के विनाश से गुणरूप द्वित्व न्यायकन्दली चास्योपलक्षणाद्विशेषः। उपलक्षणमपि व्यावच्छिनत्ति, न तु स्वोपसर्गनताप्रतीतिहेतुः। नहि यथा दण्डीति दण्डोपसर्जनता पुरुषे प्रतीयते तथा जटाभिस्तापस इति तापसे जटोपसर्जनता, दण्डोपसर्जनतापुरुषस्य प्राधान्यं चार्थक्रियायामुपभोगातिशयाऽनतिशयापेक्षया । नन्वेवं तापेक्षिकोऽय विशेषणविशेष्यभावो न वास्तवः, किं न दृष्टो भवद्भिः कर्तृ करणादिव्यावहार आपेक्षिको वास्तवश्चेति कृतं विस्तरेण संग्रहटीकायाम्। द्वित्वसामान्यज्ञानादपेक्षाबुद्धेविनश्यत्ता। उभयकगुणालम्बना बुद्धिरपेक्षाबुद्धिरित्युच्यते । तस्या द्वित्वसामान्यज्ञानाद्विनश्यता विनाशकारणसान्निध्यां द्वित्वसामान्यात् । तस्य द्वित्वगुणेन सह सम्बन्धाज्ज्ञानाच्च द्वित्वगुणबुद्धेअपने आश्रय को दूसरों से भिन्न रूप में समझाता तो है, किन्तु उसमें अपनी उपसर्जनता की प्रतीति को उत्पन्न नहीं करता, क्योंकि 'दण्डी' इस प्रतीति से जिस प्रकार पुरुष में दण्डरूप विशेषण की उपसर्जनता प्रतीत होती है, उसी प्रकार 'जटाभिस्तापसः' इस प्रकार के स्थलों में जटादि से युक्त तापसादि को जटा से शून्य तापसादि से विलक्षण रूप में भान यद्यपि होता है, फिर भी जटादि उपलक्षणों की उपसर्जनता की प्रतीति तापसादि में नहीं होती। दण्ड से युक्त ( दण्डी ) पुरुष में दण्ड से रहित पुरुष की अपेक्षा विशेष प्रकार का उपभोग मिलता है, इसी दृष्टि से दण्डी पुरुष में प्रधानता और दण्ड में उपसर्जनता है । (प्र. ) तो फिर यह कहिये कि विशेष्यविशेषणभाव आपेक्षिक हैं, वास्तविक नहीं ? ( उ०) क्या आप लोगों ने कर्तृत्वकरणत्वादि के आपेक्षिक है, वास्तविक दोनों प्रकार के व्यवहार नहीं देखे है ? टीकादि रूप संग्रह ग्रन्थों में इससे अधिक लिखना व्यर्थ है। (द्वित्वसामान्यज्ञानादपेक्षाबुद्धविनश्यत्ता)। गुणस्वरूप दो एकत्वों को विषय करनेवाले एक ज्ञान को 'अपेक्षाबुद्धि' कहते हैं। जातिस्वरूप द्वित्व (द्वित्वत्व) के ज्ञान से उसकी (अपेक्षाबुद्धि की) 'विनश्यत्ता' अर्थात् उसको विनष्ट करनेवाले कारणों की समीपता संघटित होती है, (फलतः विनाश को उत्पन्न करनेवाली सामग्री का संवलन होता है)। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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