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न्यायकन्दलीसंवलित प्रशस्तपादभाष्यम्
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[ गुणे संख्या
प्रशस्तपादभाष्यम्
बुद्धिरुत्पद्यते तदा तामपेक्ष्यैकत्वाभ्यां स्वाश्रय योद्वित्वमारभ्यते । ततः पुनस्तस्मिन् द्वित्वसामान्यज्ञानमुत्पद्यते । तस्माद् द्वित्वसामान्यज्ञानादहै ( इसे ही अपेक्षाबुद्धि कहते हैं ) । उस समय उसी बुद्धि की 'अपेक्षा' करके उन दोनों एकत्व नाम के गुणों से उनके आश्रयरूप दोनों द्रव्यों में द्वित्व संख्या की उत्पत्ति होती है । इसके बाद द्वित्व संख्या में द्वित्वसामान्य ( द्वित्वत्व ) का ज्ञान उत्पन्न होता है । द्वित्वसामान्यविषयक इस ज्ञान से
न्यायकन्दली
च तस्य सम्बन्धा ज्ञानोत्पत्तिहेतवः । एवं च सति युगपदनेकेषु विषयेषु ज्ञानं भवत्येव, कारणसामर्थ्यात् । तच्च भवदेकमेव प्रभवति, आत्मान्तःकरणसंयोगस्यैकस्यैकज्ञानोत्पत्तावेव सामर्थ्यात् । अत एव सविकल्पोत्पत्तिरपि, युगदभिव्यक्तेष्वनेकसङ्केतविषयेषु संस्कारेषु स्मृतिहेतुष्वात्मान्तःकरणसंयोगस्य सामर्थ्यादेकस्यानेकविषयस्मरणस्योत्पादात् । यदि नामानेकगुणालम्बनेका बुद्धिरुपजाता ततः किमेतावता ? तदेतां बुद्धिमपेक्ष्यैकत्वाभ्यामेकगुणाभ्यां स्वाश्रयोर्द्रव्ययोद्वित्वमारभ्यते । स्वाश्रययोः समवायिकारणत्वम्, एकगुणयोरसमवायिकारणत्वम्, अनेक विषयाया बुद्धेनिमित्तकारणत्वम् । यदैकगुणयोरेका बुद्धिरुत्पद्यते तदेकत्वाभ्यां अधिष्ठान के साथ अन्तःकरण का सम्बन्ध ही ज्ञान का कारण है । ऐसी स्थिति में अनेक विषयों का ज्ञान सुलभ होगा, क्योंकि अनुरूप कारणों का संवलन है । अनेक विषयों का यह एक ही ज्ञान हो सकता है, क्योंकि आत्मा और अन्तःकरण के एक संयोग में एक ही ज्ञान को उत्पन्न करने का सामर्थ्य है । इसी हेतु से सविकल्पोत्पत्ति अर्थात् अनेक विषयों की एक स्मृति की उत्पत्ति भी सङ्गत होती है, क्योंकि पहिले का अनुभव जितने विषयों का होगा उससे संस्कार भी उतने ही विषयक उत्पन्न होंगे। इसके अनुसार अनेकविषयक या एकविषयक अनुभव से जहाँ स्मृति में कारणीभूत अनेक विषयक संस्कार उत्पन्न होते हैं, एवं एक ही समय उबुद्ध होते हैं, वहाँ अनेक विषयों की एक ही स्मृति उत्पन्न हो सकती है, चूंकि आत्मा और अन्त:करण के उक्त संयोग में उक्त प्रकार के स्मरण को भी उत्पन्न करने का सामर्थ्य
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उत्पत्ति मान ली गयी तो प्रकृत में
| ( प्र० ) अनेक विषयक एक बुद्धि की यदि इसका क्या उपयोग है ? ( उ० ) यही उपयोग है कि अनेक विषयक एक बुद्धि की सहायता से दो संख्याविषयक एक बुद्धि ( 'अयमेकः, अयमेक:' इस प्रकार की एक बुद्धि ) उत्पन्न होती है । उक्त रीति से ज्ञात इन्हीं दो एकत्वों से द्वित्व की उत्पत्ति होती है । दोनों एकत्वों के आश्रयीभूत दोनों द्रव्य द्वित्व के समवायिकारण हैं। दोनों एकत्व संस्थायें असम