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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २७२ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे संख्या प्रशस्तपादभाष्यम् तस्याः खल्वेकत्वेभ्योऽनेकविषयबुद्धिसहितेभ्यो निष्पत्तिरपेक्षाबुद्धिविनाशाद् विनाश इति । कथम् ? यदा बोद्धश्चक्षुषा समानासमानजातीययोर्द्रव्योः सन्निकर्षे सति तत्संयुक्तसमवेतसमवेतैकत्वसामान्य ज्ञानोत्पत्तावेकत्वसामान्यतत्सम्बन्धज्ञानेभ्य एकगुणयोरनेकविषयिण्येका __ अनेक एकत्व की बुद्धि एवं अनेक एकत्व इन सबों से इसकी उत्पत्ति होती है । ( प्र० ) कैसे ( उ० ) चक्षु के साथ सम्बद्ध उक्त दोनों द्रव्यों में से प्रत्येक में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाली 'एक' संख्या में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाली एकत्व जाति का ज्ञान होता है। इसके हो जाने पर एकत्व सामान्य एवं इसके ( दोनों 'एक' संख्या रूप गुणों के साथ ) सम्बन्ध एवं ( इन संख्यारूप गुणों में ) उस सामान्य का ज्ञान इन सबों से दोनों 'एक संख्याओं में अनेक ( एकसंख्या) विषयक एक बुद्धि उत्पन्न होती न्यायकन्दली तस्याः खल्वेकत्वेभ्योऽनेकविषयबुद्धि सहितेभ्यो निष्पत्तिरपेक्षाबुद्धिविनाशाद्विनाशः । खल्वित्यवधारणे, तस्या एकत्वेभ्यो निष्पत्तिरेव, न त्वकैकगुणसमुच्चयमात्रत्वमित्यर्थः । एकत्वे चैकत्वानि चेति समासाश्रयणम्, अन्यथा द्वित्वोत्पत्तिकारणं न कथितं स्यात् । अनेकविषयबुद्धिसहितेभ्य इति । अनेकशब्द एको न भवतीति व्युत्पत्त्या द्वयोर्बहुषु च द्रष्टव्यः, अनेकेषु विषयेषु या बुद्धिस्तत्सहितेभ्य इति । एतदेव प्रश्नपूर्वकं प्रतिपादयति कथमित्यादिना। यदा यस्मिन् काले बोद्धरात्मनश्चक्षुषा समानजातीययोर्घटयो 'तस्याः खल्वेकत्वेभ्योऽनेकबुद्धिसहितेभ्यो निष्पत्तिरपेक्षाबुद्धि विनाशाद्विनाशः' ( इस वाक्य में प्रयुक्त ) 'खलु' शब्द का प्रयोग इस अवधारण के लिए हुआ है कि अनेकद्रव्या संख्या अनेक एकत्व संख्याओं का समूहमात्र नहीं है, किन्तु अनेक एकत्वों से उत्पन्न होनेवाली ( एकत्व से भिन्न ) अनेकद्रव्या संख्या स्वतन्त्र ) ही है। 'एकत्वेभ्यः' इस पद की निष्पत्ति के लिए 'एकत्वे च एकत्वानि च' इसी समास का अवलम्बन करना चाहिए, ऐसा न करने पर ( 'एकत्वञ्च एकत्वञ्च एकत्वञ्च एकत्वानि' ऐसा समास मानने पर ) 'एकत्वेभ्यः' इस पद से द्वित्व के कारणीभूत दो एकत्वों में द्वित्व की कारणता नहीं कही जायगी। 'अनेकविषयबुद्धिसहितेभ्यः' इस वाक्य में प्रयुक्त 'अनेक' शब्द से दो एवं उससे आगे की सभी संख्याओं का बोध होता है, क्योंकि 'अनेक' शब्द की ‘एको न भवति' इस प्रकार की व्युत्पत्ति है। अनेक विषयों में जो ( अनेक एकत्वों की ) बुद्धि है, उससे (द्वित्वादि) अनेकद्रव्या संख्याओं की उत्पत्ति होती है। 'कथम्' इस पद के द्वारा प्रश्न कर इसी विषय को समझाने का उपक्रम करते हैं। 'यदा' अर्थात् जिस समय 'बोद्धः' अर्थात् For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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