SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २५७ पार्थिवपरमाणुरूपादीनां पाकजोत्पत्तिविधानम् । घटादे - रामद्रव्यस्याग्निना सम्बद्धस्याग्न्यभिघातान्नोदनाद्वा तदारम्भकेष्वणषु पार्थिव परमाणुओं के रूपादि की पाक से उत्पत्ति ( कहते हैं ) । घटादि कच्चे द्रव्यों के उत्पादक परमाणुओं के साथ अग्नि का ( अभिघात या नोदन नाम का ) संयोग होता है। उक्त परमाणुओं के साथ न्यायकन्दली नुष्णाशीतभेदात् त्रिविधः । काठिन्यप्रशिथिलादयस्तु संयोगविशेषा न स्पर्शान्तरम्, उभययेन्द्रियग्राह्यत्वात् । अस्यापि नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः पूर्ववदिति । व्यवहितस्य रसस्य ग्रहणं न गन्धस्य, तस्य नित्यत्वाभावात् । पार्थिवपरमाणुरूपादीनामुत्पत्तिविनाशनिरूपणार्थमाह- पार्थिवपरमाणुरूपादीनामिति 1 यद्यपि परमाणव एव पृथिवी, तथापि ते कार्यरूपपृथिव्य - पेक्षया पार्थिवा उच्यन्ते । पृथिव्या इमे कारणं परमाणवः पार्थिवपरमाणवः, तेषां ये रूपादयस्तेषां पाकजानामुत्पत्तविधानं प्रकारः कथ्यते । नन्वेवं सति श्यामादिविनाशनिरूपणं न प्रतिज्ञातं स्यात्, नैवम्, यकारशब्देन तस्यावबोधात् । यथा हि रूपादीनां पाकादुत्पत्तिप्रकारः । यत्र पूर्वेषां विनाशादपरेषमुत्पादस्तमेव प्रकारं दर्शयति-घटादेरामद्रव्यस्येत्यादिना आदिशब्देन शरावादयो गृह्यन्ते । कठिनता और कोमलता नाम के कोई अतिरिक्त स्पर्श नहीं हैं वे विशेष प्रकार के संयोग ही है, क्योंकि आँख और त्वचा दोनों इन्द्रियों से इनका प्रत्यक्ष होता है । 'अस्यापि नित्यत्वानित्यत्वनिष्पत्तयः पूर्ववत्' इस वाक्य में 'पूर्व' शब्द से ठीक पहिले कहा गया गन्ध अभिप्रेत नहीं है, क्योंकि गन्ध नित्य है ही नहीं । किन्तु गन्ध से पहिले कहे हुए रस का ग्रहण है ( जो नित्य और अनित्य दोनों प्रकार का होता है ) । For Private And Personal 'पार्थिवपरमाणुरूपादीनाम्' इत्यादि सन्दर्भ पार्थिव परमाणुओं । रूपादि की उत्पत्ति और विनाश का निरूपण करने के लिए है । पृथिवी के परमाणु यद्यपि स्वयं ही पृथिवी है, फिर भी 'पृथिव्या इमे कारणं परमाणवः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार कार्यरूप पृथिवी की अपेक्षा ये परमाणु भी 'पार्थिव' कहलाते हैं पार्थिव परमाणुओं के जो 'रूपादि' अर्थात् पाकजरूपादि उनकी जो उत्पत्ति उसका 'विधान' अर्थात् प्रकार कहते हैं । ( प्र० ) इस प्रकार की व्याख्या में ( कच्चे घटादि के ) श्यामादि रूपों का विनाश प्रतिज्ञा के अन्दर नहीं आवेगा ? ( उ० ) ( उक्त प्रतिज्ञा वाक्य में ) 'प्रकार' शब्द के रहने से ( उस प्रतिज्ञा वाक्य के द्वारा ) रूपादि के विनाश का भी बोध हो जायगा | अर्थात् पाक से रूपादि की उत्पत्ति के जिस प्रकार में रूपादि के विनाश से दूसरे रूपादि की उत्पत्ति होती है, वही 'प्रकार' 'घटादेरामद्रव्यस्य' इत्यादि से कहते हैं ३३
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy