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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २२८ ___ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणसाधर्म्यवैधर्म्य न्यायकन्दली एवं निर्गुणत्वं गुणरहितत्वं गुणानां स्वरूपं तेषां स्वात्मनि गुणान्तरानारम्भकत्वात् , तदनारम्भकत्वञ्च रूपादिषु रूपाद्यन्तरानुपलब्धरनवस्थानाच्च । एवं सत्येक रूपमणुः शब्द इत्यादिव्यवहार उपाचारात्। सङ्घयादिकं रूपाद्याश्रयं न भवति गुणत्वाद् रूपादिवत् । स्वरूपान्तरं कथयति-निष्क्रियत्वमिति । द्रव्ये गच्छति रूपादिकमपि गच्छतीति चेत् ? न, वेगवद्वायुसंयोगेन व्योमादिषु कियाया अभावाच्छाखादिषु च भावाद् अन्वयव्यतिरेकाभ्यां मूतत्वक्रियावत्त्वयो. याप्यव्यापकभावसिद्धौ मूर्त्यभावेन रूपादिषु क्रियानिवृत्तिसिद्धः कथं तर्हि तेषु गमनप्रतीति: ? आश्रयक्रियया, यथैव सत्तायां नहि सत्ता स्वाश्रयेण सह गच्छति, एकस्य गमने विश्वस्य गमनप्रसङ्गादिति । यह द्रव्याश्रितत्व गुणों के केवल साधर्म्य समझाने के लिए ही कहा गया है, कर्मादि पदार्था का वैधयं समझाने के लिए नहीं, क्योंकि द्रव्य एवं कर्म प्रभृति पदार्थों में भी 'द्रव्याश्रितत्व' तो है ही। इसी प्रकार गुणरहितत्व रूप निर्गुणत्व भी गुणों का साधर्म्य ही है (गण से भिन्न पदार्थों का वैधर्म्य नहीं) क्योंकि एक गुण में दूसरे गुण की उत्पत्ति नहीं हाती है। एक रूप दूसरे रूपों का उत्पादक इसलिए नहीं है कि एक रूप में दूसरे रूपों की उपलब्धि नही होती है। एवं एक रूप में दूसरे रूप की सत्ता मानने में अनवस्था भी होगी। इस प्रकार ( गुण में गुण की असत्ता सिद्ध हो जाने पर यही कहना पड़ेगा कि ) 'एक रूपम्', 'अणुः शब्दः' इत्यादि प्रयोग लक्षणामूलक हैं। इस प्रसङ्ग में अनुमान का प्रयोग इस प्रकार है कि रूपादि गुणों में संख्यादि गुण नहीं है, क्योंकि वे भी गुण हैं, जैसे कि रूप ! 'निष्क्रियत्वम्' इत्यादि से गुणों का दूसरा साधयं कहते हैं । (प्र०) द्रव्य के चलने पर उसी के साथ रूपादि भी तो चलते हैं ? (उ०) आकाश में वेग से युक्त वायु का संयोग रहने पर भी क्रिया होती है। किन्तु वेग से युक्त वायु का संयोग रहने पर शाखादि में क्रिया होती है। इस अन्वय और व्यतिरेक के बल से क्रिया और मूर्त द्रव्य में इस प्रकार व्याप्यव्यापकभाव निश्चित होता है कि क्रिया मूर्त द्रव्य में ही रहती है। ऐसा सिद्ध हो जाने पर रूपादि में व्यापकीभूत मूर्तत्व के अभाव से व्याप्यभूत क्रिया का अभाव सिद्ध होता है । (प्र०) फिर रूपादि में गमन की उक्त प्रतीतियाँ कैसे होती हैं ? (उ०) जिस प्रकार सत्ता में आशय की क्रिया से क्रिया की प्रतीति उसके स्वयं न चलने पर भी होती है, उसा प्रकार रूपादि में भी आश्रय की क्रिया से ही क्रिया की प्रतीति होती है । इस प्रकार अगर क्रिया की प्रतीति से ही क्रिया की सत्ता मानी जाय तो फिर समस्त संसार का ही चलना स्वीकार करना पड़ेगा। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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