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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम [द्रव्ये तेजःन्यायकन्दली स्थूलावभासभाजो भवन्तश्चाक्षुषा जायन्ते, निरन्तरतया चैकत्वेनाध्यवसीयन्ते, इति चेत् ? किमेतेषु बहुषु तदानीमेकः स्थूलाकारो जायते ? किं वा केशेष्विवाविद्यमानः समारोप्य प्रतीयते ? यदि च जायते स नोऽवयवीति । अथाविद्यमानः प्रतीयते, भ्रान्तिस्तहि । भ्रान्तिश्चाभ्रान्तिप्रतियोगिनी, क्वचिदेकः स्थूल: सत्योऽभ्युपेयः । न च विज्ञाने तस्य सत्यता युक्ता, स्थूलमहमस्मीति प्रतीत्यनुदयादनेकद्रष्टसाधारणत्वाभावप्रसङ्गाच्च । तस्माद्विषय एवायमेकः स्थूलः, सर्वदा भिन्नाकारेण प्रतिभासनादर्थक्रियासम्पादनाच्चेत्यवयविसिद्धिः । दूर से भी देखा जाता है। उस समूह के बीच व्यवधान न रहने के कारण केश अनेक होने पर भी एक दीखते हैं। (उ.) (१) उन परमाणुओं में एक स्थूलाकार वस्तु की उत्पत्ति होती है, जिसमें वस्तुतः विद्यमान एकत्व का भान होता है ? (२) या जैसे केशसमूह में वस्तुतः अविद्यमान भ्रमज्ञान विषय के एकत्व का भान होता है, वैसे ही उक्त परमाणु समूह के स्थल में भी होता है ? अगर पहिला पक्ष मानते हैं तो फिर वही (परमाणुओं में उत्पन्न स्थूलाकार एक वस्तु ) हम लोगों का अभीष्ट अवयवी है। अगर दूसरा पक्ष माने तो फिर एकत्व की इन प्रतीतियों को भ्रान्तिरूप मानना पड़ेगा। भ्रान्ति अभ्रान्ति का प्रतियोगी है, इसकी प्रसिद्धि के लिए कहीं एक स्थूलाकार वस्तु की यथार्थ सत्ता को स्वीकार्य करना अनिवार्य है। सभी वस्तुओं को विज्ञानस्वरूप मान लेने पर ( यद्यपि उक्त एकत्व प्रतीति के प्रमात्व की उपपत्ति हो जाती है, किन्तु यह विज्ञानवाद' इसलिए अयुक्त है कि घटादि वस्तुओं में ) 'मैं स्थूल हूं' इस प्रकार को प्रतीति नहीं होती। एवं घटादि वस्तुएं अनेक ज्ञाताओं से ज्ञात न हो सकेंगी। १. अगर सभी पदार्थ विज्ञान स्वरूप ही हैं तो फिर आत्मा और घटादि दोनों एक ही विज्ञान स्वभाव के हैं, अत दोनों को एक मानना पड़ेगा। फिर जैसे आत्मा की अभिव्यक्ति 'अहम्' शब्द से होती है कि 'मैं जानता हूँ, वैसे ही 'घटादि स्थूल हैं' इत्यादि प्रतीतियों का यह अभिलाप न होकर 'भै स्थूल हूँ इस प्रकार का होना चाहिए। इससे दो आपत्तियाँ आ जाती हैं-(१) घटादि के लिए 'अहम्' शब्द के प्रयोग को, एवं (२) 'अहम्' शब्द बोध्य में स्थूलत्व को, किन्तु जो 'अहम्' शब्द से समझा जाता है, वह स्थूल नहीं हो सकता, एवं जो स्थूल है वह 'अहम्' शब्द का अभिधेय नहीं हो सकता। २. 'अनेकप्रतिपत्तसाधारणत्व' की जो अनुपपत्ति दी गई है, उसका अभिप्राय है घटादि वस्तुएँ विज्ञान के आकार की है तो फिर यह मानना पड़ेगा कि मेरे विज्ञान से गृहीत होनेवाला घटविज्ञान आपके विज्ञान से गृहीत होनेवाले घटविज्ञान से भिन्न है, क्योंकि मेरा और आपका विज्ञान अवश्य ही भिन्न है। तस्मात् जिस घट को मैं देखता है उसी को आप भी देखते हैं यह स्वारसिक प्रतीति नहीं हो सकेगी। अनेक ज्ञाताओं से किसी एक वस्तु का ज्ञात होना ही उस विषय का 'अनेकप्रतिपत्तसाधारणत्व' है। यही अनुपपन्न होगा। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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