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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम [साधर्मावैधर्म्य प्रशस्तपादभाष्यम द्वयोगुरुत्वं रसवत्त्वश्च । भूतात्मनां वैशेषिकगुणवत्त्वम् । पृथिवी और जल इन दोनों के गुरुत्व और रसवत्त्व ये दो साधर्म्य हैं। भूत अर्थात् पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पाँच और आत्मा इन छः द्रव्यों का विशेषगुणवत्त्व साधर्म्य है। न्यायकन्दली मित्यस्य पुनरुक्तत्वप्रसङ्गात् । नन्वात्मनोऽपि प्रत्यक्षत्वमस्ति ? सत्यम्, बाह्येन्द्रियापेक्षया त्रयाणामित्युक्तम् । तथा रूपवत्त्वं रूपसमवायः। द्रवत्वं द्रवत्वन्नाम गुणान्तरम्। ___ द्वयोर्गुरुत्वम्। द्वयोः पृथिव्युदकयोः, गुरुत्वन्नाम गुणान्तरम्, तस्य भावात् पृथिव्यामुदके च गुरुशब्दनिवेशः। रसवत्त्वञ्च रससमवायः, न केवलं तयोर्गुरुत्वं रसवत्त्वञ्चेति चार्थः । भूतात्मनां वैशेषिकगुणवत्त्वम् । भूतानां पृथिव्यप्तेजोवायुनभसामात्मनां च वैशेषिकगुणयोगः । विशेषो व्यवच्छेदः, विशेषाय स्वाश्रयस्येतरेभ्यो व्यवच्छेदाय प्रभवन्तीति वैशेषिका रूपादयस्तद्योगो भूतात्मनाम् । होना, महत्त्वादि प्रत्यक्ष के कारणों का सम्बन्ध नहीं, क्योंकि ऐसा मानने पर इन तीनों का रूपवत्त्व को साधर्म्य कहना पुनरुक्ति-दुष्ट हो जाएगा। प्रत्यक्षत्व तो आत्मा में भी है ? (उ०) हाँ है, किन्तु यहाँ बाह्य इन्द्रियों से उत्पन्न प्रत्यक्ष का ही ग्रहण है । एवं 'रूपवत्त्व' शब्द का अर्थ है रूप का समवाय और 'द्रवत्व' शब्द से द्रवत्व नाम का स्वतन्त्र गुण विवक्षित है। 'द्वयोः पृथिवी और जल इन दोनों का गुरुत्व' अर्थात् गुरुत्व नाम का स्वतन्त्र गुण साधर्म्य है। इसी गुरुत्व नामक गुण के सम्बन्ध से पृथिवी और जल ये दोनों 'गुरु' शब्द से व्यवहृत होते हैं : ‘रसवत्त्व' शब्द से रस का समवाय इष्ट है। गुरुत्व और रसवत्त्व इन दोनों में से केवल गुरुत्व ही या केवल रसवत्त्व ही पृथिवी और जल के साधर्म्य नहीं हैं, किन्तु दोनों मिलकर उनके साधर्म्य हैं, यही 'च' शब्द से सूचित होता है। 'भूतात्मनाम्' अर्थात् पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश एवं आत्मा इन छः द्रव्यों का वैशेषिकगुण का सम्बन्ध साधर्म्य है। यहाँ 'विशेष' शब्द का अर्थ है 'भेद' (व्यवच्छेद) विशेषाय स्वाश्रयस्येतरभ्यो व्यवच्छेदाय प्रभवन्तीति वैशेषिकाः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार अपने आश्रय को जो गुण भिन्न पदार्थों से अलग रूप से समझावे वही यहाँ 'वैशेषिक' शब्द का अर्थ है। इन्हीं रूपादि विशेष गुणों का योग पृथिव्यादि पाँच भूत एवं आत्मां इन छः द्रव्यों का साधर्म्य है । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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