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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५६ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [साधर्म्य वैधयं प्रशस्तपादभाष्यम् अनाश्रितत्वनित्यत्वे चान्यत्रावय विद्रव्येभ्यः । पृथिव्युदकज्वलनपवनात्ममनसामनेकत्वापरजातिमत्वे । क्षितिजलज्योतिरनिलमनसां क्रियावत्वमूर्तत्वपरत्वापरत्व अवयवी द्रव्यों को छोड़कर और सभी द्रव्यों के अनाश्रितत्व और नित्यत्व ये दो साधर्म्य हैं। _पृथिवी, जल, तेज, वायु, आत्मा और मन इन छ: द्रव्यों के अनेकत्व और अपरजातिमत्त्व ये दो साधर्म्य हैं। पृथ्वी, जल, तेज, वायु, और मन इन पाँच द्रव्यों के क्रिया, मूर्त्तत्व, न्यायकन्दली अनित्यद्रव्याणां कारणविनाशयोः सम्भवेऽपि कारणेन न विनाशः, किन्त्वन्येनेति विवेकः । तथा अन्त्यविशेषवत्त्वमन्त्यविशेषयोगित्वमित्यर्थः । __ अनाश्रितत्वं क्वचिदप्यसमवेतत्वम्, नित्यत्वं विनाशरहितत्वञ्च द्रव्याणां साधर्म्यम् । तत् किं सर्वेषां साधर्म्यमित्यत आह-अवयविद्रव्येभ्योऽन्यत्रेति । अवयविद्रव्याणि परित्यज्यान्त्यविशेषवत्त्वानाश्रितत्वनित्यत्वान्यन्यत्र सन्तीत्यर्थः । न केवलं पूर्वोक्ताः पृथिव्यादीनां धाः, किन्त्वनाश्रितत्वनित्यत्वे चेति चार्थः । पृथिव्यादीनां द्रव्याणामेव परस्परसाधयं वैधर्म्यञ्च प्रतिपादयन्नाह--पृथिव्युदकज्वलनपवनात्ममनसामिति। अनेकत्वं प्रत्येक व्यक्तिभेदः । अपरजातिमत्त्वमिति पृथिवीत्वादिजातिसम्बन्धित्वम् । से नहीं होता है, अन्य वस्तुओं से होता है । इसी प्रकार 'अन्त्यविशेष' शब्द का अर्थ है अन्त्यविशेष का सम्बन्ध ।। कभी भी समवाय सम्बन्ध से न रहना ही 'अनाभितत्व' शब्द का अर्थ है। 'नित्यत्व' शब्द का अर्थ है नाश को प्राप्त न होना, अनाश्रितत्व और नित्यत्व ये दोनों ही द्रव्य के साधर्म्य हैं। ये दोनों क्या सभी द्रव्यों के साधर्म्य हैं ? इसी प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि "अवयविद्रव्येभ्योऽन्यत्र" अर्थात् अवयविद्रों को छोड़कर और सभी द्रव्यों में अन्त्यविशेष, अनाश्रितत्व और अनित्यत्व ये तीनों रहते हैं। 'च' शब्द से यह अभिप्रेत है कि पृथिवी प्रभृति द्रव्यों के पहिले कहे हुए साधर्म्य ही नहीं हैं किन्तु प्रकृत अनाश्रितत्व और नित्यत्व भी उनके साधर्म्य हैं। पृथिव्यादि द्रव्यों में ही परस्पर साधम्यं और वैधर्म्य का निरूपण करते हुए "पृथिव्युदकज्वलन मनसाम्" इत्यादि सन्दर्भ कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में परस्पर भेद ही 'अनेकत्व' शब्द का अर्थ है । 'अपरजातिमत्त्व' शब्द से पृथिवीत्वादि जातियों की अधिकरणता अभिप्रेत है। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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