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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [साधयंवैधयं प्रशस्तपादभाष्यम् द्रव्याश्रितत्वञ्चान्यत्र नित्यद्रव्येभ्यः । नित्य द्रव्यों को छोड़कर और सभी पदार्थो का द्रव्य में आश्रित रहना साधर्म्य है। न्यायकन्दली ग्राह्यम् । एतानि परित्यज्यापरेषां द्रव्यादीनां त्रयाणां कारणत्वं समवाय्यसमवायिकारणत्वम् । यद्यपि द्रव्यस्य नासमवायिकारणत्वम्, न च समवायिकारणत्वं गुणकर्मणोः, तथापि निमित्तकारणविलक्षणतयेदं साधर्म्यमुक्तम् । __द्रव्याश्रितत्वञ्चान्यत्र नित्यद्रव्येभ्य इति । नन्वाश्रितत्वं षण्णामित्युक्तं तेनेदं पुनरुक्तम् ? न पुनरुक्तम्, द्रव्योपलक्षितस्याश्रितत्वस्यात्र विवक्षितत्वादिति कश्चिद् । तदयुक्तम्, सामान्यादीनामपि द्रव्योपलक्षितस्याश्रितत्वस्य सम्भवान्नेदं द्रव्यादित्रयसाधर्म्यकथनं स्यात् । तस्मादित्थं व्याख्येयम् । अन्यत्र नित्यद्रव्येभ्य इति द्रव्यग्रहणमुपलक्षणम्, तद्वत्तयोऽन्त्या विशेषास्तेऽपि गृह्यन्ते। नित्यद्रव्याणि तद्गतांश्च विशेषान् परित्यज्य द्रव्य एवाश्रितत्वं द्रव्यादीनां त्रयाणां साधयं नापरेषामित्यर्थः । पदार्थों का कारणत्व' साधर्म्य है। यहाँ कारणत्व शब्द से समवायिकारणत्व और असमवायिकारणत्व ही इष्ट है । यद्यपि द्रव्यों में असमवायिकारणत्व नहीं है, एवं गुण और कर्म में समवायिकारणत्व नहीं है, किन्तु यहाँ 'क रणत्व' शब्द से 'निमित्तकारणभिन्न कारणत्व' रूप साधर्म्य ही विवक्षित है। (यह साधर्म्य द्रव्यादि तीनों वस्तुओं में समान रूप से है)। "द्रव्याश्रितत्वञ्चान्यत्र नित्यद्रव्येभ्यः"। (प्र०) पहिले कह चुके हैं कि आश्रितत्व (नित्य द्रव्यों को छोड़कर) छः पदार्थों का साधर्म्य है। फिर वही बात कहते हैं, अतः इसमें पुनरुक्ति दोष है। (उ०) इस दोष का परिहार कोई इस प्रकार करते हैं कि पहिले केवल 'आश्रितत्व' साधर्म्य का उल्लेख है, अब 'द्रव्या-ितत्व' साधर्म्य कहते हैं। दोनों में कुछ अन्तर अवश्य है, अतः पुनरुक्ति दोष नहीं है। किन्तु यह समाधान ठीक नहीं है, क्योंकि यह द्रव्यादि तीन वस्तुओं के साधर्म्य का प्रकरण है, अतः द्रव्याश्रितत्व रूप प्रकृत साधयं सामान्यादि पदार्थों में अतिप्रसक्त होगा, इसलिए प्रकृत पङ्क्ति की व्याख्या इस प्रकार करनी चाहिए कि प्रकृत 'अन्यत्र नित्यद्रव्येभ्यः" इस वाक्य में प्रयुक्त द्रव्य' पद उपलक्षण है ('द्रव्याश्रितत्व' शब्द का अर्थ है, द्रव्यरूप समवायिका रण से उत्पन्न होना, तदनुसार) नित्य द्रव्य और उनमें रहनेवाले 'विशेष' अर्थात् नित्य गुणों को छोड़कर द्रव्यादि तीन वस्तुओं का (फलतः अनित्य द्रव्य, अनित्य गुण और कर्म इन तीन वस्तुओं का) 'द्रव्याभितत्व' अर्थात् द्रव्यरूप समवायिकारण से उत्पन्न होना साधर्म्य है, औरो का नहीं। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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