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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ उद्देशन्यायकन्दली द्रव्यत्वाद्यपरम्, द्रव्यत्वं गुणत्वं कर्मत्वञ्चापरम्, सत्तापेक्षयाल्पविषयत्वादित्यर्थः, तथा द्रव्यत्वाद्यपेक्षया पृथिवीत्वादिकमपरम्, तदपेक्षया घटत्वादिकमपरम्, गुणत्वाद्यपेक्षया रूपत्वादिकमपरम्, कर्मत्वाद्यपेक्षया चोत्क्षेपणत्वादिकं व्याख्येयम्। जलमुपलभ्य वह्निमुपलभमानस्य तदित्यनुगमाभावाद् द्रव्यत्वं नास्तीति केचित । तदसारम, द्वयोरपि तयोः स्वप्राधान्येन प्रतीतिसम्भवात् । स्वप्राधान्यप्रतीतिरेव द्रव्यत्वप्रतीतिः । उत्क्षेपणादिष्वपि चलनात्मकताप्रतीतिरस्ति, सैव च कर्मत्वप्रतीतिः । रूपादिषु तु कृतसमयस्यानुवृत्तिप्रत्ययसम्भवाद् गुणत्वस्याप्रत्याख्यानम् । व्यक्तिग्रहणमिव समयग्रहणमपि तस्य प्रतीतिकारणम्, ब्राह्मणत्वस्येव योनिसम्बन्धज्ञानम् । तत्रापि विशुद्धब्राह्मणसन्ततिजस्योत्पत्तिमात्रानुबद्धमपि ब्राह्मणत्वमिन्द्रियपातमात्रेण क्षत्रियादिविलक्षणतया न गृह्यते, अत्यन्तव्यक्तिसौसादृश्येनानुद्भूतत्वात्। यदा तु मातापित्रोस्तत्पूर्वेषाञ्च वृद्धपरम्परया विशुद्धब्राह्मणत्वमवसितम्, तदा ब्राह्मणोऽयमिति प्रत्यक्षेणैव प्रतीयते। "द्रव्यत्वाद्यपरम्" द्रव्यत्वादि जातियाँ अपर हैं। अर्थात् द्रव्य त्व, गुणत्व, कर्मत्व इत्यादि जातियाँ सत्ता की अपेक्षा 'अपर' हैं। इसी प्रकार यह व्याख्या भी करनी चाहिए कि द्रव्यत्वादि जातियों की अपेक्षा पृथिवीत्वादि जातियां अपर' हैं। पृथिवीत्वादि की अपेक्षा घटत्वादि जातियाँ अपर हैं। एवं गुणत्वादि सामान्यों की अपेक्षा रूपत्वादि सामान्य अपर हैं और कर्मत्वादि सामान्यों की अपेक्षा उत्क्षेपणत्वादि सामान्य अपर हैं। कोई कहते हैं कि जल की उपलब्धि के बाद वह्नि की उपलब्धि होने पर "यह वही है" इस प्रकार की (प्रत्यभिज्ञात्मक)प्रतीति नहीं होती है । अतः जलवह्नयादि साधारण द्रव्यत्व नाम की कोई जाति नहीं है । किन्तु यह असङ्गत है, क्योंकि स्वतन्त्ररूप से प्रतीति का विषय ही द्रव्य है। जल एवं वह्नि दोनों की ही स्वतन्त्ररूप से प्रतीति होती है। अतः अवश्य ही दोनों में रहने वाली एक द्रव्यत्व जाति है । उत्क्षेपणादि सभी क्रियाओं में चलनरूपत्व की प्रतीति होती है । चलनरूपत्व की प्रतीति ही वस्तुतः कर्मत्व की प्रतीति है (अतः कर्मत्व जाति भी अवश्य है)। रूपादि चौबीस गुणों में जिस व्यक्ति को 'गुण' पद की शक्ति गृहीत है, उस व्यक्ति को रूपादि में भी अवश्य ही गुणत्व की प्रतीति होती है। अतः गुणत्व जाति का भी खण्डन नहीं कर सकते । सामान्य (जाति) की प्रतीति के लिए व्यक्ति के ज्ञान की तरह सामान्यवाचक शब्द की (व्यक्ति में) शक्ति का ज्ञान भी कारण है। जैसे ब्राह्मणत्व जाति के ज्ञान में योनिसम्बन्ध का ज्ञान कारण है। ब्राह्मणत्व जाति भी ब्राह्मणजातीय माता पिता से उत्पन्न व्यक्ति में उत्पत्ति के समय से ही सम्बद्ध रहती है, किन्तु क्षत्रियादि व्यक्तियों के अवयवों के साथ ब्राह्मण जातीय व्यक्तियों के अवयवों का अत्यन्त सादृश्य होने के कारण For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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