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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् सामान्यं द्विविधं परमपरञ्चानुवृत्तिप्रत्ययकारणम् । तत्र परं सत्ता, महाविषयत्वात् । सा चानुवृत्तेरेव हेतुत्वात सामान्यमेव । ( १ ) पर और ( २ ) अपर भेद से सामान्य दो प्रकार का है । वे अनुवृत्तिप्रत्यय' अर्थात् विभिन्न वस्तुओं में एक आकार की प्रतीति के कारण हैं। उनमें 'सत्ता' पर सामान्य ही है,क्योंकि वह महाविषय' अर्थात् और सभी सामान्यों से अधिक आश्रयों में विद्यमान है । सत्ता केवल सामान्य ही है ( विशेष नहीं ), क्योंकि वह केवल अनुवृत्तिप्रत्यय का ही कारण है, अर्थात् परस्पर भिन्न अपने न्यायकन्दली गमनग्रहणात् पञ्चैव कर्माणि । अत्रोपपत्तिमाह-भ्रमणरेचनस्यन्दनेत्यादि । यस्माद् भ्रमणादयोऽपि गमनविशेषा गमनप्रभेदा न जात्यन्तराणि, तस्माद् गमनग्रहणेनैतेषामपि ग्रहणात् पञ्चैवेत्यवधारणं सिद्धयतीत्यर्थः । ___सामान्यं कथयति-सामान्यं द्विविधमिति । द्वैविध्यमेव कथयति-परमपरं चेति । चोऽवधारणे, परमपरमेवेत्यर्थः । तस्य रूपं कथयति-अनुवृत्ति प्रत्ययकारणमिति । अत्यन्तव्यावृत्तानां पिण्डानां यतः कारणादन्योन्यस्वरूपानुगमः प्रतीयते तत्सामान्यम्। कि तत्परं सामान्यमित्याह-परं सत्तेति । भी तो कर्म हैं ? किर 'कर्म पाँच ही हैं' यह अवधारण असङ्गत है । इसी प्रश्न का समाधान 'गमनग्रहणात्' इत्यादि से करते हैं । अर्थात् चूंकि गमनरूप कर्म का ग्रहण किया गया है, इसलिए कर्म पाँच ही हैं। 'भ्रमणरेचन' इत्यादि से इसी में युक्ति देते हैं । चूंकि भ्रमणादि गमनत्व जाति के ही हैं, दूसरी जाति के कम नहीं हैं, अतः 'गमन' पद से भ्रमणादि कर्मों का भी संग्रह हो जाने से 'कर्म पाँच ही हैं' यह अवधारण ठीक है। "सामान्यं द्विविधम्” इत्यादि पक्तियों से अब (अवसरप्राप्त) सामान्य का निरूपण 'परमपरञ्च' इस वाक्य से करते हैं । (१) पर और (२) अपर ये दो प्रकार सामान्य के कहे गये हैं । इस वाक्य के 'च' शब्द से इस 'अवधारण' का बोध होता है कि सामान्य के पर और अपर भेद से दो ही प्रकार हैं । 'अनुवृत्तिप्रत्ययकारणम्' इत्यादि से सामान्य पदार्थ का लक्षण कहते हैं (अर्थात) अत्यन्त विभिन्न दो वस्तुओं में जिस एक वस्तु के रहने से एक आकार की प्रतीति होती है, उसी को सामान्य' कहते हैं । वह 'पर' सामान्य कौन सा १. जैसे कि एक घट दूसरे घट से भिन्न है, फिर भी उन दोनों में ये घट हैं' एक आकार की प्रतीति होती है और पट में यह प्रतीति नहीं होती। इसका कारण सभी घटों में घटत्व नाम के सामान्य का रहना ही है । एवं घट और For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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