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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रमं त्रप्रसंगा क्षेत्र पाक मन्त्रोपिलिख्यते ॥ ऋप्यादयोः प्रसिद्धाः ॥ ॐ नमो भगवते क्षेत्रपालव्यग्राय सर्प भूष गायक पा लडमरु कख द्वांगत्रिशुल धारिणे हीं हीं दुं फट् स्वाहा।। अनेनम त्रेणभूतभविष्यदानं भविष्यति । अथातीता दिजा नप्रदक्षेत्रपालमंत्र प्रसंगात् अतीतादिज्ञानप्रे कर्णविद्याम त्रोपिलिख्य ते ॥ ऋष्यादयोप्रसिद्धाः हां मिनिष गम् ॥ ध्यानं ॥ कनकै र्वज्ञ वै पूर्व र बैर्वै मौति कैरपि ॥ लत के दुकहाराद्यै भूषितांनि त्यशोभजेत् ॥ ह्रीं हे कर्णवि ये ममा कर्णविवरमनुप्रविश्य अतीतानागत्व वर्त्तमानं मे कर्णे व दब देखा हा ॥ इतिप्रपंचसार संग्र हे गीर्वाणे दविरचिते सप्तविंशतिः परलः। अथगायत्री विधान ॥ पूर्वी गायत्री न्यास प्रकार उच्यते ॥ तत्राणिपूर्वत्र णवस्थ ऋष्या दीन कुर्यात् ॥ प्रजापति ऋषिः देवी गायत्री छंदः परमात्मा देवताप्रणवंयथाशक्ति जखापुन र्व्याहृते ऋष्पा दी। न्यसेत् ॥ जमदग्नि भरद्वाज भ्भ्रमगौतम का श्य पनि श्वामित्रवसिष्ट ऋषयः ॥ गायत्र्युष्टिष्ण मनुष्टुप्ष्ट हुतीपंक्ति त्रिष्टुपूजगत्यः छंदांवि ॥ सप्तार्चिर नीलसूर्यो वाक्य विवरुणोद पाविश्वे देवदेवताः। ॐ भूः ओं भवेः ॐ खः म ॐ तपः असत्संइतिसप्तव्याहृतयः एताभिर्व्याति हमि ई न्मुखांसोरुयुग्मेषु सो दषक मान्यसेन् ॥ एवं व्याहृतिभिर्न्यस्त्वाथ था शक्तिज स्वापुनः विश्वामित्रऋषिः गायत्री छंदः सविता देवखा एवं गायन्यायादीन ॐ जनः For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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