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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir प्र.सं. षटकंमेघनादादिपुत्रत्रिकंइत्से तैःसर्वैर्मि लिखाविंशतिदेवताभि:पंचमावरणम्।।ततस हाहोत्री ही मंगला ३१०|| पत्रपाद केभ्योहीं श्रीनमः। एवमेवचर्चिकापत्रयोगेनपुवहरिसिद्धीपत्रकिलिकिलापत्रकालरात्रीपत्र विभीषिका पुत्र तिपूर्वाद्यष्टदल केसरेषमंगलपत्रकायष्टके नषष्ठावरणम्॥ ततस्तर ोभी होंब्रह्माणीपुत्रपाद केभ्योहीश्री नमःारवमेवमाहेश्वरीपुत्र कौमारीपुत्रवैष्णवीपुत्रवाराहीपुत्ररंद्राणीपुत्रचामुंजापत्रम हालक्ष्मीपुत्रइति पूर्वायष्ट दलेषुब्रह्मण्यादिमार पुत्रैःस्प्तमावरणम्॥पनस्तदाढेत्री ही इंदबटुक पादुकेभ्योहीश्रीनम रसादिवस बटुकांतंच तरमाभ्यंतरपाकोरपरितःप्रागादि इंद वटुकादिदशकेनअष्टमा। वरणम्॥पनस्तदा ही श्रीही हेतु भैरवपाडले |भ्योहीश्रीनमत्यादिनी पुरांतभैरव अग्नि भैरव वेताल भैरवअम्मिजिव्हा भैरव कराल भैरव भीमरूपभैरव अचलभै| रखश्री ही हाटकेश्वर भैरव पाद केभ्योहीश्रीनमा इतिचतुरसस्यमध्यप्राकारेषागादि हेतु कादिदशकेननवमावरणम् श्रीहीवजिणीपुत्रपादुकेभ्योहीश्रीनमा इत्यादिपद्मिन्यंतचतुरस्त्रस्यवाह्य प्राकारलो केशायु पक्जीणीपुत्र दश केनपूर्वादिदि सदशमावरणाम्।।एवं भैरवंसंपूज्यवलिंदयात्॥शाल्पपललंसर्पिलाजचूर्णानिएर्कराः॥गडमि रामः सुरसापूपोमध्यकैःपरिमिश्रितैःकित्वाकवलमाराध्यदेवप्रागुकवर्मनापरतंचंदपुष्पानिमितमैवलिंहरेत्। ३११ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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