SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 595
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भगवते वासुदेवाय विष्णवैत्रिशूल मूर्ते मोरस रस त्रिशूलमूर्ति धरायत्रिशूलमूर्ति घरसेनाधिपतयेमहा त्रिशूलाय स्वादाइति पुनः दंडापरायुधावत राष्टट्ले पुत्र मेण समर्चयेत् तदुच्यते ॥ ॐ विलवे जनार्दनायनमः ॥ ॐ स्वाने ह पीकेशेत्यादिप मित्तं नमो भगवते वासुदेवाय विल वेदं जमूर्ते मारसर सदंडमूर्ति घराय जमूर्ति घर सेनाधिप नये महादं डाय नमः। इतिप्रयमेवां तर दले समर्चयेत् मुनः विप्लवेज नानाय नमः । ॐ ॐ स्वाने हृ षीकेशेत्यादि ॐ मित्यंतं ॐ नमो भगवते वासुदेवाय यवि सवे कुंतमूर्तमार सरस के नमूर्ति घराय कुंतमूर्ति घर से नाधिपतये महा कुंतायनमः। इति द्वितीयांवांत रद्द लैपुनः ॐ विलवे जनार्दनायनमः॥ ॐ ॐ स्वाने हृषीकेशेत्यादिय ॐ दूत्यं तं ॐ नमो भगवते वासुदेवाय विघ्नवेशक्तिमूर्ते मार सरस शक्तिमूर्ति घराय शक्ति मूर्ति घरसेनाधिपतयेमहाशक्तयेनमः । इति व्यतीये वातरले पुनः ॐ विल वे जनार्दनाय । ॐ ॐ स्वाने हृषीकेशे त्यादिय ॐ मित्यंत। ॐ नमो भगवते वादे वायवि वेपाश मूर्तेमा र सरक्षा पाशमूर्ति धरायचा मूर्ति धरसेनाधिपतयेम हा पाशायनमः । इतिचतुर्थे वांतराले पुनः ।। ॐ विल वेजना ईनायममः। ॐ ॐ रहा नेहषी के शेन्यादिय ॐ मित्यंत । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय विल वे अंकुशम् तैमार सरस अंकुश मूर्ति धराय अंकु शामूर्तिधरसेनाधिपतयेमहांकुशायनमः । इतिपंचमे वांतरद् लेषु। पुनः ॐ वि । For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy