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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir प्र.सं. देवता हां हृत् ही शिरः साद्यंगानिहूइ तिमंत्रःहकारषष्ठस्वरविंदभिरयंमत्रःध्यानपूजादिकंपूर्ववत्॥ २७६ अपवराहमनप्रसंगात् भूलाभफलपदेवसामान्यात्से त्रस्य पति नेत्यस्पमत्रस्ययन्त्रमपिकल्पांतरोक्तम वलि स्यते कर्गिका मांकोलग नरंमा ध्यसमन्वितं चकमचं कोणषट् के तरंगा निचसंधिषअरपत्रकेसरोद्यद सहयवर्णके चतरमनरेवर्णान्कोल मन्नस्य चामपंचचालित्यबाह्ये चपझे पोज शपत्र के क्षेत्र से सादि सत्र स्पाप्यपमर्धचांकमात् परामणसंवेश्यवाह्येमा र कयापिचभू सरात्रिभूवीजदिभूदीजमालिखेत। क्षेत्रसेत्यादि सूतस्पयत्रमेतच्छु भेदिनेताम्र पहेसमालिस्यवर्णसून्यायया विधि स्लापितं भवनेय हाक्षेत्रवाना गरेपिवा दिशेवातत्रवर्धतेदिनशःसर्वसंपदःगजावतमहिषीरपमेषस्वरादिभिः धनधान्य घराध्यक्ष सारत्न विभूषणैः आ हादयतिविभवैरन्यैश्वस्यात्मतारमाः अस्यार्थ:प्रथमषट्कोणंविलियनमध्येपणवंत ध्येभूमि तिवराहवीजें तन्मध्येसाध्यनामादिषट् सुकोणेषुसुदर्शनषतर्णकोणसंधिषसुदर्शनषडंगानित दहिरष्ठ पत्रंप विलिख्यतसकेसरेष वैष्या वाटासरस् कैकमसरंचविलिखेन पनर्दल मध्येष पागक्तमहा राग वराह मन्त्रस्पवर्गाश्चतरबतरोविलिय अवशिष्टमप्यष्टमेविलिख्य तदहिः षोर एदलंपविलियनेषता २०६ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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