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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir || खारेयः क्षेत्रं स प्रकृत्वः प्रदक्षिणकत्वाम्यदं तु संप्रास्य तस्य क्षे त्रं भविष्यति प्रयोगांत रम् ॥ नित्यं भूमिस्ट शंन्मत्रं जपे दष्ट स हलकं बिंद ने महतीं भूमि मसपत्ना मकंटकां अंकुवा रेत थानो के रविवारे विशेषतः जपे तिष्ठा काम रक्तं महती भूमिमा जुयात् नित्यमष्टसहस्त्रं तुयोज पे ह रिमर्चयन् महतीं श्रिय मानो निगुरो राजा भविष्यति ॥अ वराह मन्त्र प्रसंगात कल्पांत रो कर प्रयोगविशेषा पिलिख्यते लक्ष होमो जपाने स्याद्वव्यैश्चैव सपायसैः स प्रदीपान वा प्रोति नात्र कार्या विचारणा अस्पार्थः पंचगव्यैश्व पायसैश्व हुत्ते दितिप्रयोगांतरं दधिमध्याज्यमिता श्वचतुरंगुल संमितांगलू चीरष्ट सा हल हुने झा धिर्विनश्यति आम्रपर्णैर्हतेविं सं ज्वर शांतिर्भविष्यति एतेम हावरा होकाः प्रयोगाः ॥ अपेवरा हाष्टास र विधिः कल्पांत्तरो को वलिख्यते ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छंदः वराहो देवताॐहत् भूशिरः बरा हायशिखानमः कवचं ॐ भूवराहायनमः अत्र सां गत्वातिनील वनंपद्म इयं स्वां कग क्षोणी शक्तिमुदारबाहु भिर यो शंखंग दामंबुजं चक्रे विश्व तमुग्र कांतिम राहं भजे भूल क्ष्मी रतिकांतिभिः परिवृतं चर्मासि संदीप्तिमिः ॐ भूवरा हायनमः इतिम काः ऐश्वर्यप्रधानो यंमन्त्रः पूजादि कं महावराहप्रोकवत् ॥ अर्थ व रा है का सर मन्त्रोपिकल्पांत रो को त्र लिख्य ते भार्गऋषिः गायत्री छंदः वराह For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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