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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ती त्रिनेत्रासिं दूरवर्गामति कोमलागी मायामयीतत्वमयीनमामिध्यानानंतरंकल्पद्रुमूलमणिकट्टिमसंनिवि शंसक्तानपत्रलेतमौक्तिकवष्टिहृष्टादशाभयेवियती मरुणां त्रिनेत्रा मिष्टाप्तये भगवतीमन लयामः ईदनि ।। मन्त्रःसि बिंदकश्चतर्थस्वर एकविंशतिलसंजपेत् दशांशमान्यै ई नेत् पुरश्चरार्थ अत्यैश्वर्ण्य फलप पाना यंमत्रःअथपूजापाकसप्तमेषदेभुवनेशी विधानोकेपी ठेसमावासमर्चयेत एक शक्तिलादावरणादयोन संति अथवाभवनेश्वरीत्रिगुणित विधानोक्तवत्संपूजयेत् अयास्य मन्त्रस्य न्यासविधिः रेंहीश्रीसुषवोचैक नाथाश्रीपादुकांपूजयामिरेही श्रीरक्तां वाषा दश्रीपादुकांपूजयामि बीजत्रयादिशुक्लांबापादकांपूजया मित्रीज त्रयादिनिकलानंदनाथाश्रीपादुकेत्यादित्यादिसकलानंदनाथाश्रीपादुकेत्यादिनवात्मानंदनाथा श्रीपादुकेत्यादिआक्रूरानंदनाथाश्रीपाद केत्यादिदतिमूर्षितत्रैववामेदाक्षिणेपूर्वदक्षिणपश्चिमोनरोषवि न्यसेत् सर्वत्रबीजत्रयादिच पुनःसचिदानंदपरम शिवसं विदेनम:चिदानंदपरमशिवसंबिनमःआनंदा, माशिवसविदेममःइतिनाभौतद्वामेतद्दसिणेच बीजत्रयाद्येवविन्यसेत् पुनः नमइतिमूलमन्त्रण नाभिहृदयभूमध्येषुन्यस्वापुनःसपरार्धात्मकविंदवितवत्रीपादुकांपूजयामिवियांकितस्तनयुगल For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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