SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्र.सं. णीशुषंसवक्षोमणिमकरम हाकुंडलामंडितांगं ह स्तोधञ्चक शंखं बुजगद्ममलंपीत कौशेयमा शाविद्योता समु २५३ दिनकरसदृशंपद्मसंस्छंन मामिॐ इतिमन्त्रः शतलक्षजपः पायसै घृतसि तै वदशांशं होमः विप्र भूरुह समि द्विर्वाविप्र भूरुहं पलाशं एवं परं श्वरणा होमः ॥ अथ प्रयोग तर होमः सर्पिः पायस गालीति लसमि दाज्यैरते न योज दुयात् ऐहिक पार त्रिकमा भतेवाच्छितं फलं नचिरात् अथ पूजा वैष्णवपी ठे मुकुंदंसमा बाह्यसमर्चये नू अंगः प्रथमाचतिः वासुदेवाय संकर्षणायन सुखाय अनिका परफटिकख र्ण दूवें नीला काराः || संजाश्वक शंखगदापंकधारिणः किरीट केयूरिणश्च पीतांबरधरा अपि एतैर्म हा दिग्द लेषु समर्चयेन पुनः शात्यै। श्रियै सरख सैरलै अछ पद्मर जो दुग्ध दूर्वा वर्णास्वलंकृताः एताभिर वो तर दले से नाभि मूर्निशक्ति भिर्हिती थाट अतिः आत्म ने अंतरात्म नै परमात्म ने ज्ञानात्म नेनि र सै प्रतिष्ठायै विद्यायै शां वैज्वल ज्वाला समाभास्पुरा लायाम् र्तिशक्तयः एताभिर्मूर्तिशक्ति मिर्दिग्द ले वंतराल दलेषु च समर्चयेत् एवं टतीयावृतिः इंद्रादिभिश्चतु यी वज्जादि भिः पंचमी ॥ अथ प्रणव प्रसंगात शक्ति प्रणवमन्त्रविधिश्व कल्पांत रो को लिख्य ते ईश ऋषिः पंक्ति छं दःश रामः किभैरवी देवताओंहृत् ईश्वरः इत्यादि दीर्घ स्वर षद्वेनांगानि प्रकाशमध्य स्थित जित्वरूपावराभयेसंद्धा २५ २५३ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy