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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir | काम बीजं विलिख्य तद्बहिस्ता रेग संवेष्ट्य तस्मिन्साध्य नाम विलिखे दिति । अस्य माला मंत्रः ॥ नमो भगवति क्षांक्षांरर - लं वं बटुकेशिए ह्मे हि संहर से हर महाकालि पति मान स निवासिनि परे शत्रु न्नाशय नाशय शोषय शोषय नर भूत प्रेत पिशाचादि सर्वग्रहान्नाशय नाशयदह दह पचपच सर्व स्त्री पुरुष वशकरि सर्व लोक भुव ||नेश्वरि त भ्रंशयम द्वर्णमान य स्वाहा ॥ अनेन ये जपेत् त्रिकोण कोणेष्वथ वन्हि बीजं वा ह्येतु वृत्तं परि तो धरिण्याः ॥ कोणेषु धात्री मनितोथतारं साध्या वृ त्तं स्तंभन मंत्रमेतत् ॥ लोहेधता ने फल के विष मोः संलि ख्य यंत्रं परिपूज्य जप्त्वा ॥ सहस्त्रवारं प्रयतो मनीषी रख नेत्क्षमा यो रिपु दि ड्यु खः सन् स भाकूंटेरियो च्छले हा रितोरण मंदिरे | मातृ स्थानेऽथवा प्राच्यां दिज्येष्ठा गृहे थवा जिव्हा स्तंभ हुनु स्तंभ भुज पल्लिंगगुह्ययोः ॥ चर्हत् श्रवणस्तंभं सर्वलोके व पिप्रिये ॥ अस्यार्थः॥ तत्रधरण्याः कोणेषुभू बीजं भूपुर पार्श्व यो स्तार विलिखे दिति । सबिंदुकं पावक दीर्घ बीजं बाह्मे सलग्ना क्षर राशि को ष्टं ॥ प्रत्येक रेखाभिशिखं ससाध्यं विद्वेषणं क्षोभक रं तदेतत् एतत्समाराध्य जपेत्सहस्रं कृत्वा निशायां रिषु के श्मशाने पुनर्ज पे देवमथो द्विषंत श्वान्योन्य मुद्दान्मरणे प्रयां ति । दशाह मे वं प्रजपे द्रि पूणां कुलक्षयाय प्रलयाय मंत्री अस्थार्थः ॥ मध्ये सदीर्घ अग्निबीजे बिलिरूप For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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