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________________ Shri Mahi Jain Aradhana Kendra www.kobirth.org Acharya Shri Kailashsagars Parmandie प्रसनक कपालैः मुहिमुसल कुंदनंदकवलप्रगदा मिंदियाल शत्याद्यैः।उद्यविकृतिभुजाप्रामाहिष केसजलजलपी ||संकाशसिंहस्था वाग्नि निभा पयस्थाचाप्य मरकतश्यामामाघ्रत्वपरिधानासर्वाभरणान्वितात्रिनेत्राचा हि कलित नीलकुंचित कुंजल विलसत्किरीट कशशिकलास पालिवलयन युर कांविनिके यूर हारसंभिन्ना सरदितिजाभयभय दाध्येयाकात्यायनी प्रयोग विधीप्रयोगविधौरक्षानिग्रहादावित्यर्थः। इतिताम सध्यान। उत्ति सकिं खपि पिभयमेसमुपस्थितेयदिशक्यमशक्य वातन्मे भगवति शमयखाहा। इति मंत्रः।उपद्रव शांतिरक्षा प्रधानाये मंत्रः। पदयसंधियुदाघुआधारोदर पाहता लेनेषु राजेदो। संधिवद साकपालहकर्णचर्कञ्चवोन्म सेवाइस क्षरन्यासः चटर्लहंजपः। ब्रीहिति लाज्य हविर्मि: ईशाशं पुरश्चरण होम अथवनदुर्गा यंत्रकल्पा तरोक्त मंत्रंलिख्य तपद कोणाकर्णिकं पनामष्ट पत्रसकेसरं तदहिदशदलेचतुर्विशदले प्रपन्नः। तदहिवृत्त युगलेमध्ये दुसाध्य संयुतं दावदुर्गा षडंगानिकर्णिकारस शड भिषुअश्यनेविलिखेन्प्रतिमान् महिषा दिनी दलदादश केदावदोर्ग वस्लिशान त्रिशः। शिप्रथमं पत्रेषुचतुर्विशाहले पुनःमालाननीयुग्म प्रनिमंन्समा लिखेत् ।। त्रिष्टुमं प्रति लो मेननदहिःसंथिषु वर्तुले प्रयनेवृत्तेअष्टमूर्ती प्रविन्यसेवाग्दती यो सायुधान्ये त दौर्णय णार वर्णर For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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