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________________ Acharya Shri Kailashsagarsuranmandir Shri Mall www.kobatirth.org Jain Aradhana Kendra प्र-स.||निर्वािआज्येनदशांश पुरश्चरण होमःइत्यर्थः॥अथपृजा विधिः॥अदलपने पीठे।जयाये विजयायोजी ११ जितायै। अपराजिता ये। नित्यायै। विलासिन्यै।दोग्य अचौरायमिंगलाये। इति शाक्तं पीठ संपूज्यतस्मिन्वजत्रा लारिणी मंत्रदेवतानित्यां देवींसमावाह्यसमर्च येत्। अंगैःप्रथमावृत्तिः।हल्ले खायै। ले दिन्थे। नंदायैक्षोभिव्य मदन तुरायै निरंजनायो रागवत्यै। क्लिन्नाया नदनावौ मेखलाये द्राविण्य स्मरवेगवौ इति द्वादशपत्रेषुद्धि ती यावृत्तिः।मातृभिस्तृतीयावृत्तिः।लो के शेषतुर्थी। इतिरितालोकहितायवनप्रसारिणी मंदिरमिंदिराया गया। सर्वनारी नरराजवर्गसंमोहिनी मोहनवाणभूता॥तिजा प्रस्तारिणी विधानं समासंग अयनित्य क्लिाविधा नमुच्यते।संमोहन ऋषिः तृष्टुप् छंदःनित्य क्लिलादेवता। ही हतानित्यशिरः क्लिन्ने शिखा मदकवचं द्रवेनेत्रं दाहाअस्त्री ध्यान।रक्तारक्तांशुक कुसमावि लिपादिकासेंदुमौलिः विद्यक्रामवृवशसमा बुर्ति तनीक्षणाच दीर्घत पाशांकशयुत्तकपालानयापन संस्थादेवी यायादमित फलदानित्यशःपार्वतीवा ही नित्यक्किन्नेमद्रवे|| खादा इनिमंत्र।लक्षंजपेदामधूक पुष्यस्लिमधुरसिक्तैर्वाह विषवीं अयुतंजुबुयात्। पुरश्चरणार्थ में थूकंमधूक|| रामः पुष्ये। अर्थपूजाः अदले पापीठे वन प्रस्तारिणी विधानोकाभिर्न विशक्ति भिःपीठसंपूज्यन सिन्नाबाह्म नितकिलो १५४ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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