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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsus yanman व लेखन साधनं वोच्यते। वन्हिर्वि निंबनियर्या सकलविषम ती मिः सीसपदे श्रुके वाशा वे पापाण के वावि लिखत मतिमान् काकरक्षेण यंत्राइतिवन्हे विडितिवन्हि चित्रकात सविझलतेन लिप्याचं निलभिप्रायःनि-चं पानि सिंविषमितिग्रहधूम वन्दिसूरणेलवणोषणहेम पारिमिर्मिलित विषमिति भीषण मुक्त नित्यहि तनि महेषु नृष्ण मिति हेमवारिआरक्तधेत्तूरसःहधूमंतरगावन सूरगाजषणं त्रिकटुक रक्षाककस पक्षस्वावंविलिख्यत्वीरे ताकाली मंत्रीज स्वा स्थापयेत् स्थापन प्रदेशउच्चतावल्मी के चलरेवाक्षत चिवरे पानिदधादशतिर्मुसु प्राप्नोतिन यादवयव विकलो व्याधितः पातितोवा।क्षतरुरितिभल्लातकोवास्तनपिलहत वृक्षोवल्मीक पावर चतुष्पथः । असे वमन्त्रस्य निग्रहचको तरमुच्यते।चकेवाटारपदेकाली शिवयातुधान खंडाचे ममदहनानिलवीतं विलिख्य विपदंडि मर्कटोलित जतमधोमुखमेत यंत्रंतुदेशे विनिक्षिपेन्मंत्री तत्रोचमखिलं दिन शः सर्वात्मनानवादि अस्यार्थः प्रथम पूर्वपश्चिमनोनवरेखाविलिव्य पुनस्तदुपरि दक्षिणेत्तरतश्च न बरेवा विलिसेत् एवंविल्चितुःपरिको थनिजायते।तेषु को छेयुईशानादिकोशमारन्यदक्षिणतःकमेगापूर्वोक्त यंत्र वदेव काली में त्रस्य अक्षराग बिलि ख्यादा पनी त्यात्य को समारभ्य वायव्यांस को पर्यंत क्रमेण पूर्वक्ति यंत्रदेवकालीनंत्रस्यासरा विलिख्याद For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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