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प्र-. वल्लभायै १३ नमोस्त हे मां बुज पीठि काये नमोस्तु भूमंडलनायिकाये नमोस्तु दे वा दिदया पराये
नमोस्तु शाह युथ वल्लभायै १४ स्तवं ति येस्तुति भिरमू भिरन्वहं प्रयीमयी त्रिभुवन मातरंरमा गु णाधि को गुरुधनधान्य भागिनोभवंति ते भव मनुभाषिताशयाः १५ प अप्रियेप अनिपग्रहस्ते पालये पदलाय ताक्षी विश्वग्रिये विष्णुमनोनुकू लेवत्यादय ग्रं मयि संनिधत्व १६ अनेन स्तोत्रमंगल क्ष्मी स्तुला समापयेत् ॥ इति प्रपंच सार संग्रहे गीर्वाणे द्रविरचिते एकादशः पटलः।। अथत्रिपुरा विधानमु च्यते संमोहन ऋषिः गायत्री छंदः त्रिपुनादेवी देवता ॐ बीजं क्लींवा ह्रीं शक्तिः श्राहृत् श्री शिरः इत्याधंगा |नि होहत हींशिरः इत्यादिवा श्रीहृत् ही शिरः की शिखा श्री कवचे होने की अवं इति वांगा निर्यात् ध्यानं नवकनक भासुरोर्वी विरचित मणि कुट्टि मेसकल्पतरौ रलवरबद्ध सिंहासन निहित सरोरुहेसमा सीना आबद्ध रत्न मुकुटी मणिकुंडलोद्यत्के यूरको मिरशना दयनू पुरायो ध्यायेड़ तान युग पाशके सो कु शेषुचापास पुष्प विशिखा नव होमवर्णा चामर मुकुदसमुद्गतता वूलं करव गाहिनीभिश्व दृतिभिः समहीवृतो पश्पनीं राम साधकं प्रसन्न दशा श्रींहीं की इनिमंत्रः द्वादशलक्षंजपेत् श्री वृक्षसमिद्भिश्व राजवृक्ष समिद्भि न ज पार्न वैश्वा १६७
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