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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दनात रायै गौर्य गगनायै गगनरेखायै पद्मायै भयप्रमथिन्ये शशिरेखाये हवेतृतीयावृत्तिः मातृभिःश्चतु दभिःपंचमी वजादिभिःषष्ठी इत्थंषणिते पूजा प्रकार इतिप्रपंचसारसंग्रहे गीर्वा गेंद्रबि रचितेनवमःपटलः॥अथवादशगुणित यंत्रविधा वक्ष्ये व्याहत्यापीत शक्ति ज्वलनपुरयुग संध्ययश त्यावीनंकोणत्यदुर्बीजक मनुचकपोलाक्तगायत्रिमंन आग्नेरावीत मर्ग तमनु विगतैर्भू पुराभ्यंचरंधेलों चिंतारत्मक हादशगुणित मिदंयंत्र मिशर्थदायी पूर्वोक्त मानतासामंत्रोत्रितये विलित्य वृत्तानां विलिखेदंत ॥ वर्तुलमनु शक्तिं स्पष्ट बिंदुनिटानां द्वादशमध्यवर्तुल रेखा यान हिमालिखेत्तुशक्तीना हरियमवरुणधनाधिपदिषु देवेचताःक्रमेण चास्सुः ईशानाग्नि नि तिमरुत्ता दिने के के विदिय भूयश्वबीजोतराक निर्गतश्लोकित को णपदक युगमग्ने मंडलयुगयुगलं स्यात् अस्पृशदांतरितलंनिशदंशक्ति प्रवेश्येत्प्रतिलोमव्याहृतिभिरंत स्थीरविकोणेषुदरतामाया विलिखे दथान बिंदुमतीएकैकांतरिताही परस्परंशक्तयमसंबंसः गायत्रीप्रति लोमतः प्रविलिखेदग्नेकपोलंबहिःहे हेचैवलिपिबहिश्वरवयेत् भूयस्लयात्रिभंवर्णान् प्रानु मनानभूपुर युगे सिंहाख्यं चिंतामणिं लिख्याद्यंत्रमशेषदुःखशमनायोक्तं पुरादेशिकोक्तैः बहिरथषोडश पत्रवृत्त विचि पर For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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