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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsyri Gyanmandir रंवारस्पते अमृत नेत्र प्लवः पूःअरूले ध्यान आसीनाकमलाकरेजपवटींपग्रहये पुस्तक विभाग कमलेंदु काभ्रमकुटा मुक्तेदुकुंद प्रभा फालोन्मीलित लोचनाकुचभर लांता भवद्भूतयेभूया दोगचि देवतामुनिगणैरासेव्य नानानिशं ऐंवाचस्पते अमृतपूनःपूः इति मन्त्रः अथाक्षरन्यासःब्रलरधा धुवोर्मध्ये नवरंध्रेच विन्यसेत् पूजादिकं दशाक्षर वागीश्वरीयत् गौमूत्र पाचितानभुलापंचदशलक्षंज पित्॥ अंकोलसर्पिषाअष्टसहसं पुरश्चरण होमः। अथचिंतामणि सरसती मंत्रः कण्व ऋषिः त्रिष्टुपूल दः ॐ ह्रीं हही अंहृत् ऊहीं हींद्री अंशिरः इत्याचंगानि ध्यानं हंसारूढाइरहसित हारेंदु कुंदावदाता | वाणी मंदस्मितयुतमुखी मौलिबदुरेखा विद्या वीणा मृतमयचटाक्षस गादीप्तिहस्ता शुभमानस्था भव दभिमत प्राप्तयेभारतीस्यात् ॐनीहसों ह्रीं ॐ सरखनमः इति मंत्रः अयाक्षरन्यासः मूर्धभूमध्य श्रोत्र नयननासापुट द्वयवदन गोपादेषुएकादश वर्णा बसेत् प्रागुक्त दशाक्षरी पीठे समावाह्य समर्चयेत् तत्रा देवया पार्श्वयोः संस्कृतायनमः एंप्राकृतायनमः इतिअंगेः प्रथमावृत्तिः प्रज्ञायै ॐ मेधा ये मृत्यै अंऐं स्मृत्यै अंऐशक्तये ॐवागीश्वर्ये ऊसुमसे अंऐवस्यै इतिहिती यावृत्तिः मातृभिस्तृती| For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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