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________________ Shri Maryvir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दो अघोराये मंगलाये इत्यष्टदले अशक्ती नवमी कर्णिका यांचा संपूज्य अस्मिन्शाते.पीठे स्व | यवरा मूर्ती समा नाह्य समर्चरोत् अंगेःप्रथमावृत्तिः सुभगाथै भगाये भगसर्पिण्ये भगमालिन्यै अ नंगायै अनंगसमायै अनंगमेवलारी अनंगमदनायै इति द्वितीयावृत्तिः पंचबाण मोर्व क्ष्यमाणैस्तृनीपा मातृभिश्चतुर्थी अस्मिवपटले त्रिपुराविधानोक्तारभैरवः पंचमी इंद्रा दिभिःषष्ठो वजादिभिः सप्तमी एवंसं पूज्य पुरश्वर्य प्रमोगान् कुर्यात् अयप्रयोगः एवंप्रमा|| थजुहीतुवन्ही बंधूक पुष्परयुतं नरोयः त्रिःस्वादुयुक्त नियमेनमत्याकुयाँ किलो की नचराशेसोवेधूकंचि चिले तन् अयमर्थः बंधक पुष्पेस्त्रिमधुरसित रयुनंजुहुयात् त्र्येलोकवश्यार्थ प्रयोगातरं पाटीरपंक लु लि तैर्बकुल प्रसूनेरशनरंदशशतप्रजुहोतियोसौ षण्मासनःसुविपुलासमवाप्पलक्ष्मी नारीनक्षितिप तीन ववशे विदध्यान पाटीर पंकचंदनं बकुलं अयमर्थ पाटीर पंकसिकैर्षकुलपुष्पेरटोत्तरसहसेजुडु यान्नित्यशःएवषण्मारोकृतलक्ष्मीश्वसर्वतश्यचभवति प्रयोगातरं पारतीसमनीभिःस्वादयुताभिस्तकिमानचिरान् लक्ष्मीकरीनराणा रोवस्यालकरजनी चौकापारतीवेटुच्चि अयमर्थः अनेनकुसुमेननीमधुरमिक्तेनसंख्यानुने सहस्रमितिन्या यात् सहस्रजुयान उक्तक | लिभवति प्रयोगांतरं९१ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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