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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir नमः ३ खंड्त्रयत्सर्वतत्वेश्वर्यैश्री महा त्रिपुर सुंदयनमः कद्या दिपादीत कंठादिकं व्यं तं शिरआदिकंठाने शिरजादि पादांतचन्याप्य पुनर्मूलमंत्रेण शिर आदिपादो तंत्रियाय्य मोपाल मत्रैश्वश्री विद्या षडंगैशषडं गानिक वाजपेत् अयश्रीविद्या मंत्रप्रसंगान शाक्तेयलमामान्ये नराजमातंगी मंत्राविधान मपिकल्पांतरो तिलिख्यते मतंग ऋषिः महाविराट् छंदः राजमातंगेश्वरीदेवता ऐं बीजं स्वाहाशक्तिःसर्ववशकरी कीलकम गइटकाम्याथै विनियोगः॥ऐहींदी ऐकसौः ॐनमोभगवतिहत ऐहीं श्रीं ऐंकी सोः श्रीमातंगीश्चरिसर्व जनमनोहरी शिरःवीजान्युत्कासर्व मुखरं जनी की ही श्री शिखा बीजान्युकासर्व राजवशंकरीसर्वस्त्रीपुरुषव शंकरीकंवदं बी जान्युकासर्वदुष्टमम वशंकरीसर्वसत्ववशंकरीसर्वलोकवशंकरीअमुकंभे वशमान याहा नेत्रं सोक्कों ऐं श्रीही ऐअस्त्रे ध्यानध्यायेयरल पीठे शुककलरणितण्वनीश्या ममात्रीन्यले काप्रिंसरोजे शशिशकेलधरांवलकींवादयंती। कल्हाराबदमालानिय मितविल सवलिकारक्त वस्त्राकोद्यच्छ खपत्रा कदिन कुचभरा क्लातकालावलग्नातन्मी लद्यो वनोद्यन्निविड मदभरोद्देललीलाविलासारत्नवेय भार गदकन कस्निमंजीरभूषां ॥. आनी या नभीष्टान् रिमत नघुरदृशासाधकास्तर्पयतीदेवोंध्या ये चुकाभी For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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